बुधवार, दिसंबर 27, 2006

आज के लिए एक कार्टून पेश है......


अब जर्मनी के ओलिवर विडर के भविष्य के बारे मे इस मजेदार कार्टून को देखिए। क्या हालत होगी ऐसी दुनियाँ की!

बुधवार, दिसंबर 20, 2006

ब्लागर बीटा से बाहर

आखिर गूगल ने ऐलान कर दिया की ब्लागर प्लेटफार्म बीटा से बाहर आ गया है। वैसे इस बारे में अटकलें भी 'अब-तब' की थी। पिछले कुछ दीनों मे गूगल काफी तेजी से चिट्ठों को बीटा पर ठेल रहा था। इसमे कूछ नए फीचर हैं जो पुराने ब्लागर पर नहीं था। सरलता में गूगल के विश्वास के अनुसार ही नए प्लेटफार्म को 'नया ब्लागर' कहा गया।
मुझे ये तो नहीं मालूम की दूसरों का अनुभव कैसा रहा पर ककुछ 'बून्दें, कुछ बिन्दु' को माईग्रेट करने में भाषा की सेटिंग अंग्रेजी हो गई तथा समय की सेटिंग गड़बड़ा गई थी। पर कुछ फीचर अच्छे हैं जैसे लेबल। यदि आपने माईग्रेट नहीं किया है तो मेरी सलाह मानते हुए अपने टेमप्लेट की कापी जरुर सुरक्षित रखें।

सोमवार, दिसंबर 18, 2006

गूगलानुसार भारतवासी अक्टूबर में क्या ढूंढ रहे थे

शायद बहुत कम लोग ये जानते हैं कि गूगल देव अपने भक्तों की खोजों का लेखा जोखा भी रखते है। इसके लिए एक अंतरस्थल भी है जिसे ज़िटगेय्स्ट (Zeitgeist) कहते हैं जहाँ पर गूगलदेव सबसे लोकप्रिय खोजों को प्रकाशित करते है। अब ये अलग अलग देश के लिए अलग अलग सूची प्रकाशित होती है। इनको देखने पर रोचक जानकारी मालूम होती है। मसलन साथ वाले चित्र में भारत की अक्टूबर की सबसे ज्यादा खोजे जाने वाले शब्द / शब्दसमूह हैं। साफ है कि भारतवासी अक्टूबर में सबसे ज्यादा यात्रा की तैयारी मे लगे थे। कुछ ध्यान आने वाली फिल्मों की तरफ भी था। सानिया मिर्जा और क्रिकेट तो भारतीय जीवन का हिस्सा जैसे है।ऐंजेलिना जोली की टोली भी उसी समय पुणे और मुंबई मे लोगों से पंगे लेती चल रही थी।
यदि आप पूरा ज़िटगेय्स्ट देखना चाहते हैं तो यहाँ जाँए। वैसे ज़िटगेय्स्ट शब्द जर्मन का है जिसका अर्थ है 'समय की भाव' या अंग्रेजी मे कहा था तो 'spirit of the times'।

शुक्रवार, दिसंबर 15, 2006

वाल-मार्ट भारत में, क्या बदलेगा? -२

अपने पिछले आलेख में मैने वाल-मार्ट के भारती के साथ समझौते के बाद भारत मे आने की बात की है। वास्तव में ये एक छोटा सा भ्रम है।वाल-मार्ट भारत मे स्टोर भले ही ना चला रहा हो, पर वे भारत से काफी कुछ खरीद कर अपने स्टोर में बेचते हैं इस तरह से वो भारत से जुड़े तो पहले से हैं। उनके ग्राहक क्या चाहते है इसपर वे काफी पैनी पकड़ निगाह रखते है। उनके खरीददार भारतीय उत्पाद पर भी निरंतर निगाह रखते हैं, और काफी कम कीमत पर काफी माल उठा लेते हैं। यही है सफल सप्लाई चेन का रहस्य।
हाँ, तो क्या पड़ोस से शर्मा जी की गल्ले की दुकानें बन्द हो जाएंगी और क्या बिल्लु वाल-मार्ट से पेंसिल, कापी खरीदेगा? क्या बिल्लु की माँ वाल-मार्ट से आटा चावल खरीदने जाएगी? लगता तो नहीं, कम से कम तुरंत तो नही और कमसकम पूरे भारत में तो नहीं। कारण कुछ ऐसे हैं।
-वाल-मार्ट के स्टोर जरा बड़े होते हैं। कहाँ है जगह हर मुहल्ले मे?
-शर्मा जी फोन करने पर एक किलो आटे का पैकेट भी लड़के के हाथ भिजवा देते है। बड़ी खराब आदत है जनाब़!
-शर्मा जी उधार पर भी माल सप्लाई कर देते है। वाल-मार्ट से उधार माल खरीदने के लिए क्रेडिट कार्ड की जरुरत पड़ेगी।
- इलेक्ट्रानिक्स - कितनी बार खरीदते है आप?
- कहीं पढ़ा कि भारत मे ७०० शहर हैं। कहाँ कहाँ जाएगी वाल-मार्ट?
- कितनी जल्दी एक तन्दुरुस्त सप्लाई चेन तैयार हो जाएगी।
- एक पैकेट चायपत्ती या नमक के लिए क्या वाल-मार्ट जाया जाएगा? हमारे सौदे जरा छोटे होते हैं जरा।

तो जनाब संभावना कुछ यूँ है। मैकडोनलड्स वालों को देखिए। बड़ी 'उफ-मैकडोनलड्स' थी मीडिया मे उनके आने को लेके। दस साल के बाद भी पाँच छे शहरों से ज्यादा नहीं बढ पाए। वे भारतीय खानपान की आदतों को कितना बदल पाए ये तो मालूम नहीं पर उनके मेनु-कार्ड मे अब भारतीय शब्द जरूर दिखते है।(अच्छा पित्ज़ा बनाते हैं मगऱ!). और अभी भी बहुत कम लोग ही जाते हैं। दूसरा, देसी मॉल भी खुब उभर रहे हैं कुकुरमुत्तों कि तरह, वे भी उसी ग्राहकी को खीचना चाहेंगे(जो गाड़ी मे आए और क्रेडिट कार्ड पार सामान खरीदें)।और तीसरी बात, शर्मा जी को कम मत आँकिए।
हाँ, सेकेंड्री इफेक्टस जरूर होंगे। जैसे भारतीय व्यापार में ग्राहकों को लुभाने के नए तरीके दिखलाई पड़ेंगे। धीरे धीरे वाल-मार्ट जैसी कम्पनियों के सप्लाई चेन, इनवेट्री वगैरह के चलाने के तरीके दूसरों द्वारा सीखे जाएंगे।
यानि ग्राहकों का फायदा। वाल-मार्ट भले सारे शहरों मे न दिखे, पर उसकी मौजुदगी महसूस जरुर की जाएगी। और हाँ, कुछ नौंकरियाँ भी लगेंगी। कुल मिला के मेरा तो यही कहना है, की 'आ जाओ ठाकुर'।

सोमवार, दिसंबर 11, 2006

वाल-मार्ट भारत में, क्या बदलेगा? - १

वाल-मार्ट दुनिया की दुसरी सबसे बड़ी कम्पनी है। इसका सालाना कारोबार ३१५ अरब अमरीकी डालर का है अमरीका मात्र मे ही इसमे १३ लाख लोग काम करते हैं। ये कम्पनी १९६२ में अमरीका के बिल क्लिंटन वाले आरकेनसा राज्य के एक छोटे कस्बे में एक बेजोड़ व्यापारी सैम वालटन ने १९६२ में स्थापित की गई थी। आज ये १४ देशों में ६६०० के करीब स्टोर चलाती है।वाल-मार्ट की सबसे खास बात है, कि इसके स्टोर में किराने का सामान से लेकर इलेक्ट्रानिक्स तक के एवरिडे लो प्राइसेज्।
वैसे तो वाल-मार्ट भारत से बहुत कुछ खरीद कर अपने स्टोरों में बेचती है पर अभी तक भारतीय ग्राहकों के लिए एक भी स्टोर नहीं चलाती है। पर अभी हाल ही में भारती व्यापारसमूह ने वाल-मार्ट से एक करार किया है। सरकारी नियमों के तहत कोई भी विदेशी कम्पनी फुटकर (रिटेल) व्यापार में ५० फीसदी से ज्यादा नहीं लगा सकती। भारती के साथ वाल-मार्ट का ५०-५० का सौदा है। तो क्या ऐसी कम्पनी के आते ही भारत में मैं और आप साबुन-तेल अब वाल-मार्ट से खरीदेंगे? एक अनुमान के अनुसार, भारत मे प्रति १००० व्यक्ति ५.५ दुकानें हैं। यानि १०० करोड़ के लिये आप खुद अंदाजा लगाएँ। तो क्या वाल-मार्ट के आते ही, इन दुकानदारों को शटर खीँचने होंगे? हाँ कहने से पहले जरा रुकिये।
पिछले कुछ वर्षों में भारत की अर्थव्यव्स्था ८ फीसदी से भी ज्यादा तेजी से बढ़ रही है। अभी हाल मे सरकारी अनुमान तो ये दर ९ % से भी ज्यादा होने की बात कर रहे हैं। बचत दर कम हो रही है, यानि हम और आप काफी पैसे खर्च कर रहे हैं। दिवाली के दिन केवल नोकिया ने ४ लाख से ज्यादा फोन बेचे। यही है रिलायंस, भारती आदि के फुटकर ( रिटेल) धंधे मे कूदने की वजह।

तो क्या वाल-मार्ट के भारतीय मार्केट मे आते ही क्या सबकुछ बदल जाएगा? अगली प्रविष्टि मे...............

मंगलवार, दिसंबर 05, 2006

फोर्ड का अनोखा नौकरी मेला

१९०३ में हेनरी फोर्ड द्वारा स्थापित फोर्ड मोटर कम्पनी दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी कार कम्पनी है। हाल के वर्षों में जापानी कार कम्पनियों की भारी मार के आगे फोर्ड जैसी अमरीकी धरोहर की हालत खस्ता हो चली है। हाल ही में फोर्ड मोटर ने अपनी सम्पदाओं को गिरवी रखकर १८ खरब डालर उधार लिये हैं ताकि कम्पनी चालु रहे। कुछ महीने पहले फोर्ड ने बोइंग मे काम कर रहे ऐलेन मुलाली को मुख्य कार्यकारी बनाया है और उन्हें जिम्मेदारी सौंपी है कि वो भारी घाटे को कम करें।
फोर्ड मे तीन लाख से भी अधिक लोग काम करते हैं। घाटे मे चल रही फोर्ड को उबारने की पहल के तहत इसमें काम करने वाले लोगों की संख्या को घटाने का लक्ष्य रखा गया है। कम्पनी ने अपने कर्मचारियों को नौकरी छोड़ने पर लुभावना आर्थिक पैकेज दिया है और साथ ही उनके लिये एक नौकरी
मेला का भी आयोजन भी किया।
इस मेले में दुसरे संगठन के लोग आमंत्रित थे जो यहाँ से फोर्ड के कर्मचारियों को अपनी कम्पनियों में भर्ती कर रहे थे। एक प्रेरक वक्ता भी थे जो कि फोर्ड के कर्मचारियों को फोर्ड छोड़ बाहर जाकर दूसरी जगह जा नया भविष्य तलाशने के लिए उत्साहित कर रहे थे। आने वाले फोर्ड कर्मचारियों को एक डी वी डी भी दी गई जहाँ आने वाले समय मे फोर्ड की संभावित अवस्था का चित्रण था और बाहर जा चुके लोगों को मिली सफलता का वर्णन था। जो संगठन यहाँ भर्ती के लिए मेले मे आए उनमें सी आई ए, एफ बी आई, अग्निशमन विभाग, रेलवे आदि थे। कुछ विश्वविद्यालय भी थे जहाँ लोग आगे पढ़ सकें। एक भूतपुर्व इलेकट्रेशियन भी थे जो कि अभी हारवर्ड में प्रबंध पढ़ रहे है, ताकि फोर्ड के कर्मचारियों को
भी प्रेरणा मिल सके।
ऐसे मेले फोर्ड के हर अमरीकी प्लाँट में लगाए गये।इन मेलों तथा कुछ अन्य पहलों से कुल ३८००० के लगभग लोगों ने फोर्ड से निर्गमन के लये बस्ता उठाया। गौर की बात ये है कि कर्मचारी कम किये जाने की बात से यहाँ का यूनियन ( यूनाईटेड आटो वर्कर्स) भी सहमत है।
क्या फोर्ड की इस पहल से छंटनी की तैयारी कर रहे दूसरे उद्योगों को कोई शिक्षा मिलनी चाहिये। या फिर सिर्फ इतना कहा जाए कि फोर्ड एक महान कम्पनी है हो संकट में भी अपनी महानता को बचाये हुए है?



सोमवार, नवंबर 27, 2006

चैपेल जी राम राम

नमस्ते चैपेल जी,

आपको भारतीय क्रिकेट टीम को बनाने के लिए रखा गया था, पर अब तो कोई टीम ही नहीं दिखती। हाँ, कुछ माडल जरुर हैं जो टेलीविज़न पर ज्यादा देर दिखाई पड़ते हैं, पिच पर कम। मेरा विचार से लगातार दसवीं पराजय हासिल करने के लिये बड़ी सख्त कोचिंग की होगी आपने, बहुत धन्यवाद।आप जैसा की देख रहे हैं, टीम मे थोड़ी परिवर्तन की आवश्यकता है।
मेरी क्रिकेट टीमः जान अब्राहम (क), बिपासा बसु(ऊ क), मिलिंद सोमन,शारुख खान, प्रीति ज़िटा, इमरान हाशमी, कंगना राउत, राखी सावंत ( विकेट कीपर), मल्लिका शेरावत , कैरोल ग्रेषियस, लालु यादव(ऊर्फ मगध एक्सप्रेस तेज गेंदबाजी के लिए बिशेष तौर पर)।विपक्षी टीम की कास्टयूम का जिम्मा बेनु सहगल को सौंपा जाय(ताकि उनकी लाज भी ना बचे)। अंपायरिंग का जिम्मा ममता बैनर्जी का रहेगा।
इसके कुछ फायदे होंगे। ममता जी के रहते टीम हारेगी नहीं। और अगर हार भी गई तो रेकार्ड खराब नहीं होगा, हम तो ऐसे भी हारते हैं।अपने पसंदीदा क्रिकेटरों को हम टी वी पर यूँ ही देखते रहेंगे। कम से कम अच्छे मनोरंजन की गारंटी रहेगी। अगर जीत गये तो बोनस(वो तो अभी भी है)। और लालुजी दौरे पर रहेंगे तो नितीशजी थोड़ा बहुत काम भी कर लेंगे। और हाँ, कोच की कुर्सी दलेर मेहदी को दी जायगी, कम से कम टीम में हजारो वाट का जोश तो भरेंगे।आपको भी पूरी फुर्सत रहेगी, बेफिक्र होके भंगडा कर सकेंगे।


कृपया विचार करें।

एक भारतीय क्रिकेट प्रेमी।

गुरुवार, नवंबर 23, 2006

गूगल - दुनियाँ की कुंजी?

प्रस्तुत है ये चित्र.........



शनिवार, नवंबर 18, 2006

सी और सी प्लस-प्लस का भयंकर लफड़ा।

हमारा एक मित्र परिवार हमारे घर पर आमंत्रित था। कानफिगुरेशन ये था - मित्र, उनकी पत्नी और छोटा बच्चा। अचानक बच्चे ने आके अपने पिता के कान में बुदबुदाया। फिर हमारे मित्र यानि बच्चे के पिता ने जोर से पूछा, "सी या सी प्लस प्लस?"। हम घबरा गये कि ये तीन साल का बच्चा इतना प्रतिभावान?! अपनी छह वर्ष की सुपुत्री पर गुस्सा आया कि केवल पी-सी गेम ही खेलती रहती है।फिर मित्र के बच्चे ने कानी उंगली दिखाई और उसके पिताजी उसे बाथरुम की तरफ ले गये। सी और सी
प्लस-प्लस का इतना भयंकर लफड़ा।

बुधवार, नवंबर 15, 2006

इन्टरनेट एक्सप्लोरर ७.० में एक से अधिक गृह पृष्ठ की सुविधा।

टैब्स का एक दृष्य और आप ये किस प्रकार से सेट कर सकते हैं जैसा की आप जानते हैं, माईक्रोसाफ्ट ने अपने इन्टरनेट एक्सप्लोरर ब्राउसर का नया संस्करण यानि इन्टरनेट एक्सप्लोरर ७.०(Internet Explorer 7.0) कुछ दिनों पहले जारी किया है। बहुत से लोगों के इसे अपनी मशीन पर संस्थापित भी किया होगा। फायरफाक्स (Firefox) अथवा ओपेरा(Opera) प्रयोग करने वाले मित्रो ने पाया होगा कि आखिरकार माईक्रोसाफ्ट ने भी टैब की सुविधा दी है, जो कि फायरफाक्स और ओपेरा में सालों से चली आ रही है (देर से सही, पर दुरुस्त आए)। देखने में ६ श्रंखला के इन्टरनेट एक्सप्लोरर ब्राउसर से थोड़ा हट के है। अभी तो इसे आप माईक्रोसाफ्ट के अंतरस्थल से अपनी मशीन पर संस्थापित कर सकते हैं पर शायद थोड़े दिन के बाद यह विंडोज़ अपडेट का हिस्सा बन जाए तो हो सकता है आपकी मशीन पर बिना दस्तक के ही किसी दिन दिखाई पड़े।

मैने इसमे दो सुविधाएँ देखी जो काफी लुभावनी है।

इसमे एक खाना दिया है जहाँ से आप सीधे अंतरजाल को खोज सकते हैं ( ये दूसरे ब्राउसरों मे पहले से है)।यानि पहले सर्च इंजन का पृष्ठ लाने की जरुरत नहीं है सीधे परिणाम देखें। सुविधा ये है कि आप अपनी पसंद के सर्च इंजन को इंगित कर सकते हैं। यानि अगर आप गूगल देवता के भक्त है, तो यहाँ से गूगलगिरी मजे मे होती है। यदि आप मेरी तरह ए एस के(ASK) को पसंद करते हैं या याहू(Yahoo) के कायल हैं तो आप अपने ब्राउसर को बता दें। यदि आप बाद में बदलना चाहें तो ये भी आसानी से हो जाता है। और हाँ, यदि आप चाहें तो इन्टरनेट एक्सप्लोरर ७.० विकीपीडिया भी खंगालेगा।

दूसरी सुविधा ये है कि आप इसमें एक से अधिक गृह पृष्ठ (होम पेज) बना सकते हैं। यानि यदि आप समय समय पर कुछ खास अंतरस्थल देखते हैं तो आपको ये सुविधा अच्छी लगेगी। ब्राउसर चालू करते ही ये सारे गृह पृष्ठ अलग अलग टैब मे खुल जाएंगे। यदि आप नेटगिरी करते समय कभी भी होम का बटन क्लिक करेंगे तो फिर आपके सारे गृह पृष्ठ (होम पेज) पुनः आ जाएंगे। सेट करना भी आसान है। जहाँ आप आपने होम पेज डालते हैं, वहाँ अलग-अलग पंक्ति मे अलग अलग यू आर एल डालें (रास्ता है, टूल्स -> इंटरनेट आप्शन्स -> जेनेरल)।

चलते चलते, कभी आप CTRL+Q भी करके देखें।

गुरुवार, नवंबर 09, 2006

मोटरसाईकल सन् १९८५ से खड़ी है

कहते हैं कि यह मोटरसाईकल सन् १९८५ से खड़ी है। प्रतीत होता है कि अब एक पेड़ के साथ इसका पूरे जन्म का रिश्ता हो गया है।


नोटः अगर आप पूछें कि कहाँ, तो ये मुझे भी नहीं मालूम। अगर आपको पतो हो तो मुझे भी बताएँ!

शुक्रवार, नवंबर 03, 2006

बी सी सी आई की कोई वेबसाईट नहीं?!

मेरे पड़ोस का नाई भी अपना जालस्थल चलाता है। पर अविश्वसनीय कितुं सत्य, जी हाँ, बी सी सी आई की कोई वेबसाईट हो, ऐसा गूगल देव को भी नहीं मालूम। जी हाँ मैं भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बार्ड की ही बात कर रहाँ हूँ। यानि, विश्व के सबसे धनी क्रिकेट बार्ड को शायद वेबसाईट या अंतरजाल का मतलब नहीं मालूम! ऐसा प्रतीत होता है की भारत का सबसे लोकप्रिय खेल को संचालित करने वाली संस्था को शायद लोगों से जानकारी बाँटने में कोई रुचि नहीं है। मुझे ये हास्यास्पद लगता है। आई सी सी का अपना जालस्थल है जहाँ कुछ जानकारी ही सही, मगर उपलब्ध जरुर है। मगर यदि आप रणजी का कार्यक्रम जानना चाहते हों तो माफ कीजियेगा, बी सी सी आई आपके लिए कोई आधिकारिक व्यवस्था नहीं कर सकती। वैसे क्रिकेट आस्ट्रेलिया का आधिकारिक जालस्थल भी मौजूद है, इंगलैण्ड एवं वेल्स क्रिकेट बोर्ड का जालस्थल भी है और न्यू ज़ीलैन्ड क्रिकेट का जालस्थल यहाँ है । पड़ोस में देखा जाए तो पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड का भी जालस्थल है।

तो क्या इसे बी सी सी आई की इस माध्यम की अनभिज्ञता कहें, या फिर कुछ और? बात ये लगती है की बी सी सी आई अंतरस्थल चलाए भी तो उसपे डाले क्या। अपने आपसी सिर फुटव्वल? या अपने आई सी सी के साथ की ताना तानी?शायद पूरी दुनियाँ ऐसी कोई अन्य मिसाल नहीं, आजकल तो आठवीं के बच्चे अंतरजाल से खेलते हैं। ।एक चिट्ठे पर भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बार्ड के आधिकारिक अंतरस्थल के उद्घाटन के बारे में लिखा भी है, पर यू आर एल नहीं।संभव है, किसी खेलप्रेमी को इस विषय पर कुछ पता हो, यदि ऐसा है, कृपया टिप्पणी जरूर छोड़ें।पर मान लिया जाए की बी सी सी आई का जालस्थल है भी, तो कहाँ लुका रखा की गूगल महाराज भी हार गए!!

मंगलवार, अक्तूबर 31, 2006

इन्द्र देवता अब बस भी करो!

अब यह एक दस्तूर हो चका है कि हर वर्ष नवंबर के आसपास बारिश चेन्नई नगर के नागरिकों के लिए एक बड़ी चुनौती लेकर आएगी। तो इस बार भी तकरीबन हफ्ते बारिश जारी है और मेरे शहर के लोग मना रहें हैं कि कब सूर्य भगवान इन्द्र देवता को मात दे पाते हैं। ये वो शहर है जहाँ पानी की आमतौर पर किल्लत रहती है और हम सालो भर पीने का पानी खरीदते है, जरुरत पड़ने पर टैंकर से अन्य जरुरतों के लिए भी पानी खरीदा जाता है। आम चेन्नईवासी पानी को अमृत समान भाव देता है। पर, उफ, इतना बारिश, इतना पानी।क्या मानव , क्या पशु पक्षी। बड़े -बड़े वृक्ष एवं वृक्षों की शाखाएँ शहर भर में धराशाई हैं। आलम ये हैं पानी ने कई मुहल्लों को वेनिस में तब्दील कर दिया है, बस कुछ गोंडोला लाने की देर है।
जहाँ मेरा दफ्तर है, वहाँ से कुछ सो मीटर पर तीन व्यक्ति इस बारिश में अपने कार मे फँस कर गए और अपनी जान गँवा बैठे।शायद बारिश में उनकी कार के ए सी प्रणाली में कोई त्रुटि पैदा कर दिया और कार्बन मोनोक्साईड ने बन्द शीशों के बीच उन्हें नहीं बक्शा। यह दो दिन पहले हुआ।

जनता है परेशान, इन्द्र देवता अब बस भी करो!

शुक्रवार, अक्तूबर 27, 2006

गूगल की आधी पकी रोटी।

गूगल देवता यदा कदा नई सुविधाओं को भक्तों की सेवा में लाते रहते हैं। अभी हाल में ही गूगल डाक्स एण्ड स्प्रेडशीट्स नाम का एक नया आनलाईन साफ्टवेयर प्रस्तुत किया है जिसमे वर्ड प्रोसेसिंग और स्प्रेडशीट्स की सुविधा है। समझ ये नहीं आया की ये है किस काम का। ऐसे कौन लोग हैं जिनके पास कम्प्यूटर और अंतरजाल की सुविधा तो है, पर कोई वर्ड प्रोसेसर नहीं।दरअसल गूगल ने राइटली नाम की कम्पनी को कुछ महीनों पहले निगला था। फिर झाड़-पोछ कर गूगल डाक्स एण्ड स्प्रेडशीट्स नाम से लाँच किया है। यदि एक से अधिक लोग किसी दस्तावेज पर मिलकर काम करना चाहते हैं तो इसमे इसकी अच्छी सुविधा है। गूगल आपको एक गोपनीय ईमेल पता भी देता है, जहाँ किसी दस्तावेज को मेल करने पर ये दस्तावेज आपके खाते में स्वयं ही आ जाता है। काम कर लेने के बाद आप इसे वापस अपनी मशीन पर माईक्रोसाफट वर्ड, ओपेन आफिस और पीडीएफ फारमैट में डाल सकते हैं।
गूगल डाक्स एण्ड स्प्रेडशीट्स की एक सुविधा का दृश्य
कुल मिला कर काम-चलाऊ से कुछ ज्यादा प्रभावशाली नहीं। मैने इसमें एक हिन्दी दस्तावेज भेजकर पीडीएफ बनाने की कोशिश की पर निराशा हाथ लगी, पीडीएफ दस्तावेज बिलकुल कोरा निकला। यह तो थी गूगल डाक्स की बात। स्प्रेडशीट को तो शायद चौपट के अलावा और कोई सज्ञा देना उचित नहीं।कुल मिला के ये समझ नहीं आया कि गूगल देवता नें अपने किन भक्तों को ध्यान में रख के बनाया है। पर जमाना बीटा का है, यानि ब्लागर की तरह गूगल डाक्स एण्ड स्प्रेडशीट्स भी बीटा में ही है। शायद गूगल वाले माईक्रोसाफट से भिड़ने के चक्कर में आधी-पकी रोटी खाने की मेज पर ले ही आए।

बुधवार, अक्तूबर 11, 2006

कम्प्यूटर पर संदेश टंकित करें, नोकिया फोन से भेजें

भारतीय भाषाओं में एस एम एस भेजना एक दुष्कर कार्य प्रतीत होता है। पर कुछ सुविधाएँ हैं जिसका प्रयोग करके आप इसका भी मजा ले सकते हैं। यदि आप नोकिया का फोन प्रयोग करते हैं तो यह काफी हद तक संभव है।ज्यादातर फोन निर्माता फोन खरीदते समय एक सी डी देते हैं जिसमे आपके कम्प्यूटर के लिए एक साफ्टवेयर होता है। यह साफ्टवेयर आपके फोन पर संगीत, फोटो आदि भेजने के लिए प्रयुक्त किया जाता है। आमतौर पर, आप इस साफ्टवेयर की मदद से फोन और कम्प्यूटर पर आपके दोस्त-परिचितों के नम्बर भी सीधे स्थानांतरित कर सकेंगे। इसके लिए फोन और कम्प्यूटर एक तार के माध्यम से, अथवा ब्लू टूथ या इन्फ्रा रेड पोर्ट के द्वारा जोड़े जाते हैं। नोकिया भी एक ऐसा ही साफ्टवेयर सी डी पर देती है जिसे पी सी सूट कहते हैं। पर एक महत्वपूर्ण सुविधा के साथ- इस साफ्टवेयर के माध्यम से आप अपना एस एम एस संदेश पी सी पर ही टंकित कर सकते है।
साथ लगे चित्र को देखिए। मैने रमण भाई के युनिनागरी टंकन पटल पर अपने संदेश तैयार करके यहाँ चिपका दिया है। फिर यही से अपने दोस्त का नाम दिया, तो साफ्टवेयर ने उनका नम्बर मेरे फोन से स्वयं ही समझ लिया। फिर वहीं से प्रेषण का बटन दबा के संदेश को रवाना कर दिया। यह काफी आसान प्रक्रिया है।कुछ बातों का ध्यान रखना जरूरी है। नोकिया के ज्यादातर अच्छे फोन पी सी सूट समर्थित हैं। (मैं एक पिटा हुआ ६६१० प्रयोग करता हूँ)। पर अच्छा होगा यदि आप पी सी सूट का नया वर्जन नोकिया के अंतरस्थल (यहाँ) से लें। यह तकरीबन २५ एम बी का है। ये भी ध्यान रखें कि कभी-कभी अक्षर बिखर जाते है। यदि पाने वाले का फोन नोकिया नहीं है, तो सब कुछ कचरा हो जाता है। फिर भी, 'कुछ नहीं से बेहतर कुछ भी' वाली बात होती है। दूसरी बात, सदेंश शायद छोटे लगें, पर अंग्रेजी से ज्यादा बाइट्स लेते प्रतीत होते हैं। यह पी सी सूट बिना आज्ञा के ही इसे दो या अधिक टुकड़ो में बाँट देता है। यदि ऐसा हुआ, तो उतने एस एम एस के पैसे भी लगेंगे।कुल मिला कर मेरा अनुभव संतोषप्रद है, पर यह और अच्छा हो सकता है। खासकर जब कि पाने वाले के फोन के निर्माता (ब्राण्ड) की जानकारी का अभाव हो तो ऐसी अवस्था का क्या निवारण है। यदि आप के कुछ दुसरे अनुभव हैं, तो आप भी बाँटे।

मंगलवार, अक्तूबर 10, 2006

विज्ञापन की मुद्रा!

यदि माना जाए तो यह एक विज्ञापन की तसवीर है जो कि थ्री एम नाम कि विख्यात कम्पनी ने वैन्कुवर, कनाडा में लगाया है।कम्पनी ये दर्शाना चाहती है कि ये शीशा इतना मजबूत है कि इसे आसानी से तोड़ा नहीं जा सकता है। इसलिए इसके अन्दर असली रुपए रखें है, तोड़ सके तो तोड़। मान गए। आमतौर पर कोई कम्पनी अपने उत्पादों में अपने विश्वास को इतने आत्मविश्वास से नहीं दर्शा पाती।फिर भी, असली दाद तब दी जाए जब यह बिहार में भी दो दिनों तक सुरक्षित रह सके !

गुरुवार, अक्तूबर 05, 2006

हवाई जहाज की निर्माण प्रक्रिया का विडियो


पंछी समान उड़ते हुए जहाज किसे प्रभावित नहीं करते। बोईंग कम्पनी के एक अंतरस्थल पर एक ७३७ को बनते हुए दिखाया गया है। यदि आप मेरे समान उत्साहित हैं तो यहाँ जाएँ फिर वहाँ पर स्थित लिंक के द्वारा ७३७-९०० ई आर कि साईट पर जा कर और इस विडियो का आनन्द लें।तकरीबन दो मिनट की क्लिप है पर है वाकई मजेदार।

Photo Courtesy: www.aerospace-technology.com

बुधवार, अक्तूबर 04, 2006

डेंगु ने ७ रेस कोर्स रोड में सेंध मारी

प्रधानमंत्री की भारी भरकम सुरक्षा भी मामूली से मच्छरों के आगे हार गई। कुछ दिन पहले तक शायद सुरक्षाकर्मी अपने शागिर्दो को यह कहते थे कि ध्यान रहे, बिना इजाजत मक्खी भी अन्दर ना जाए। पर ये कमबख्त मच्छर है कि हर व्यवस्था को धता बताते हुए और बिना संगीनो से घबराते हुए प्रधानमंत्री श्री सिंह के एक नहीं दो नातियों (या पोतों?) को अपने डंको से अस्पताल की राह दिखा दिया। अब जब ७ रेस कोर्स रोड में सेंध मारी जा सकती है, तो चिकुनगुनियाँ या डेंगु नाम का ब्रंह्मासत्र लेकर घूम रहे मच्छरों से जनता जनार्दन भारी खौफ में है।

फिलहाल हम रोहन और माधव के शीघ्र स्वास्थलाभ की कामना करते है।

इज्जत का सवाल है - इन मच्छरों को नहीं छोड़ना गब्बऱ!

चलते चलते - खबर आई है कि प्रमुख विमान कम्पनियाँ दिल्ली से आने जाने वाले विमानों में बिज़नेस क्लास यात्रियों को व्यक्तिगत मच्छर निवारण यँत्र देने के विचार कर रहीँ हैं।

शुक्रवार, सितंबर 22, 2006

ज़ोहो : अच्छा लगा


मैने हाल में एक अच्छा साईट देखा जिसे ज़ोहो कहते है। मैने तुरंत उनका वर्ड प्रोसेसर देखा तो काफी प्रभावशाली लगा।अभी इसमे हिन्दी लिखने की सुविधा तो नहीं पर कुछ अन्य अच्छी सुविधाएँ हैं।



इनके पास आनलाईन स्प्रेडशीट है और ज़ोहो शो नाम का प्रेसेन्टेशन बनाने का भी अच्छा औजार है।

शुक्रवार, सितंबर 15, 2006

हिन्दी ब्लागरों के लिए सुनील गावस्कर

स्व-अर्थकारी चित्र :जी हाँ सुनील गावस्कर जी का औटोग्राफ, हिन्दी चिट्ठाकारों के नाम।

यह भी चिट्ठाकार असम्मेलन स्थल पर लिया गया।पृष्ठ के उपर में मेरी गंदी लिखावट में लिखा शीर्षक सुनील ने सरसरी निगाह से देखा और लिख डाला - बेस्ट विशेज्। Posted by Picasa

बुधवार, सितंबर 13, 2006

चिट्ठाकार असम्मेलन में हिन्दी

पहले दिन के शुरुआती सत्र मे श्रीमती गीता पद्मनाभन, स्वतंत्र पत्रकार, ने भाषाई चिट्ठीकारी पर प्रश्न पूछा था। मैने उसका संक्षिप्त परिचय हिन्दी के सन्दर्भ में, अपनी तीन महीने मात्र के हिन्दी चिट्ठाकारी के अनुभव के आधार पर, दिया। कई सारे प्रश्न भी आए जैसे हिन्दी कैसे लिखते हैं, मेरे क्या अनुभव है,क्या ब्लागर जैसे टूल वगैरह मददगार है, हिन्दी में कितने चिट्ठे है, हिन्दी चिटठो को कैसे ढूढते है, आदि। चूंकि यह शुरुआती सत्र था और उत्सुकता ज्यादा थी, सुझाव आया की क्यों ना इसपर एक अलग सत्र ही लिया जाए। पर पहला दिन काफी सारे सत्रों से ठसा-ठस था, उस दिन इसका आयोजन नहीं हो सका। इसी दौरान मेरे द्वारा पंकज नरुला और देबाशीष भाई दोनो को, हिन्दी सत्र हो सकने की स्थिति मे फोन पर शामिल होने का आग्रह भी किया गया और दोनो पूरे उत्साह से तैयार भी हो गए।

दूसरे दिन दूसरे अर्ध में चर्चा की संभावना अधिक थी पर मुझे कहीं जाना था..............और मुझे वहाँ और कोई हिन्दी जिटठाकार नहीं मिला जिसे ये काम करने की टोपी पहनाई जा सके, सो यह हो ना सका। पर विश्वास कीजिए कई लोगों ने मेरे दो मिनट के सुबह के बखान पर ही मुझे हिन्दी चिट्ठाकार के तौर पर पहचान लिया ( जैसे चाय पर किसी ने पूछा - "हाय, यू राईट इन हिन्दी?" इत्यादि)(हालाँकि किसी सुन्दर कन्या के मुँह से ये वचन निकले, ऐसा भी हो ना सका! )

मगर छोटे में कहूँ तो कई लोगो ने मूझसे आ के अलग से पूछा और मैने उनकी जिज्ञासा को देखते हुए बताया भी। मुझे जौर्ज जकारायस (याहू भारत के प्रमुख) से कुछ मिनट मिले और मैने उन्हे हिन्दी टंकित करके भी दिखाया। उन्होंने मेरे लैपटौप पर स्वयं भी प्रयास करके देखा और कुछ सवाल भी पूछे।हमने उनसे याहू पर हिन्दी समर्थन बढ़ाने का आग्रह भी किया।ब्लागस्ट्रीट के बोथरा ने भी फान्ट और ब्राउसर समर्थन की बात छेड़ी।

छोटे में इतना ही ..... मै ये तो नहीं कहता की मैं हिन्दी चिट्ठाकारी का डंका बजा के आया हूँ , पर हाँ, कहीं ना कहीं बात जरुर रख दी।

रविवार, सितंबर 10, 2006

चिट्ठाकारों का असम्मेलन, दूसरा दिन

राजेश शेट्टी यदि कल के दिन को शानदार कहें, को आज का दिन( दूसरा और आखिरी दिन) भी कोई कम नहीं था। अब तक लोग एक दूसरे को भी काफी कुछ जान चुके थे। कल शाम की सागरतट पर हुई दावत भी कुछ शानदार ही रही होगी क्योंकि सवेरे का कार्यक्रम की शुरुआत थोड़ी ढीली ढाली ही थी। पर रफ्तार पकड़ते देर नहीं लगी। तकनीकी सत्र वीडियो ब्लागिंग को लेके आगे बढने लगा। अब तक लोग छोटे छोटे गुटों में चर्चा करते अलग अलग कोनों में दिखने लगे।लगा, एक नहीं सौ कार्यक्रम साथ साथ चल रहे हैं। राजेश शेटटी, जो कि अमरीका में रह रहे एक उद्धमी है, और जिन्होने लाईफ बियोंड कोड नाम कि किताब भी लिखी है, सुबह मे विश्व भर के लोगों कि लिए लिखने के बारे में अपने विचार प्रकट करते हुए दिखलाई पड़े। तकनीकी सत्र में, जो समानांतर चल रहा था, वहाँ लोग सर्च इंजिन औपटिमाईजेशन पर ७०-७५ लोग गोष्ठी मे तल्लीन थे, पर मैं यहाँ जरा देर से पहुँचा।
हक्सर भाई की वो तस्वीर, जिससे कोका कोला कम्पनी चिढ़ गई थी
शरद हक्सर नाम के पेशेवर फोटोग्राफर ने कुछ शानदार चित्र दिखाए, और ये भी बताया कि जब कोक ने उनके एक चित्र से चिढ़कर उन्हे बीस लाख का हर्जाना भरने का नोटिस भेजा, तो चिट्ठा जगत ने किस प्रकार उनकी मदद की थी।(पूरा झमेला यहाँ पढ़ें) । शरद हक्सर के अनुसार वे २२ मेगापिक्सेल वाला हैसेलब्लैड कैमरा प्रयोग करते है जिसमे एक चित्र १७० मेगा बाईट स्थान घेरता है।
सुनील गावस्कर बोलते हुए
ग्यारह के कुछ मिनट पहले सुनील गावस्कर याहू (भारत) के प्रबंध निदेशक जौर्ज जकारायस के पीछे की पंक्ति में साथ दिखाई पड़े। चारो बगल उत्साह चौगुना हो गया। सनी, जो की याहू के लिए क्रिकेट पर पौडप्रसारण करते है, बेहतरीन बोले। उन्होने, कई प्रश्नो का जवाब भी दिया और अपने आप को ट्रांजिस्टर पीढ़ी का बताते हुए आज के क्रिकेटरों को उपलब्ध तकनीकी सुविधाओं का बखान किया। पौडप्रसारण पर सनी ने अपने अनुभव बाटें। कृपा ने बड़ी मुश्किल से सवालों की झड़ी को रोकते हुए सनी की वार्ता को समाप्त कराया।ये दिल मागें मोर।
सनी के बगल मे मैं
(बहरहाल, लड़कियों का हुजूम सनी को घेरे, इससे पहले मैने उनका औटोग्राफ ले डाला।) कार्यक्रम अभी आधा दिन और चलना था, पर मुझे पहले से तय एक और कार्यक्रम मे भाग लेने के लिए निकलना पड़ा।
राबर्ट स्कोबल
उस समय राबर्ट स्कोबल स्काईप के सहारे स्क्रीन पर दिखलाई पड़ रहे थे, पर अभी उनका कार्यक्रम शुरु नहीं हुआ था। दूसरे अर्ध में कारपोरेट चिटठाकारी पर एक अच्छा सत्र था। मुझे मिस करना पड़ा, इसका मलाल रह गया। पर कुल मिला के बहुत रोचक दो दिन। बहुत कुछ सीखा, कुछ बाँटा। सबसे बड़ी सीख यह है, कि ब्लागजगत एक यात्रा के समान है, आप कौन सी सवारी से जाते है, किस दिशा मे जाते हैं, और किस मकसद से जाते है, यह अपने उपर निर्भर है। दूसरा, यहाँ गुरु तो कई हैं पर सर्वज्ञ कोई नहीं। तीसरा,यह चिट्ठाजगत मिल बाँट के खाने की दुनियाँ है, जितना बाटेंगे, उतनी बढ़ती होगी़!!!!

चेन्नई चिट्ठाकार असम्मेलन, पहला दिन


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असम्मेलन से प्रेरित होकर मेरा पहला पौडप्रसारण

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अतुल चिटनीस सवेरे के सत्र में बोलते हुए।

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उत्साह भरे माहौल में होती चर्चाएँ।



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कृपा शंकर पौडप्रसारण के बारे मे बात करते हुए
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मोब्लागिंग ने भी ध्यान खींचा

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पेशेवर चिट्ठीकारी पर अमित अग्रवाल बोलते हुए
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लोगों ने अमित अग्रवाल को बहुत ध्यान से सुना

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श्रीमती गीता पद्मनाभन ब्लागर तो नहीं मगर उनका अतुल्य जोश देखने लायक था।










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असम्मेलन से प्रेरित होकर मेरा पहला पौडप्रसारण

शनिवार, सितंबर 09, 2006

चिटठाकारों का असम्मेलन की चेन्नई मे धमाकेदार शुरुआत




जैसा कि मैने अपने पिछले पोस्ट में ईंगित किया है, चिटठाकारों का असम्मेलन की ज्ञाननगरी चेन्नई के मे ९ और १० सितम्बर को आयोजित हो रहा है। आज सवेरे इस असम्मेलन की शुरुआत हुई। १५० से अधिक चिटठाकार इसमें भारत एवं विदेश के अलग अलग शहरों से पूर जोश के साथ उपस्थित है। इस आयोजन का प्रसारण अंतरजाल पर हो रहा है। अधिक जानकारी के लिए www.blogcamp.in से प्राप्त की जा सकती है। कल यहाँ सुनील गावस्कर के आगमन का भी ईंतजार है। भारतीय भाषाओं में चिटठाकारी में उत्सुकता देखते हुए मैने प्रतिनिधियों को अक्षरग्राम से अवगत भी किया ।आयोजनस्थल से कुछ चित्र प्रेषित कर रहा हूँ। मैं समय मिलते ही फिर नया सवांद प्रेषित करुंगा। Posted by Picasa

मंगलवार, अगस्त 22, 2006

आने वाली चर्चाः द सर्च

मैने देखा की मै केवल उन पुस्तकों की चर्चा कर रहा हूँ जो मैने बिलकुल हाल फिलहाल में पढ़ा है। पर तकरीबन साल भर पहले मैने जौन बैटल कि द सर्च पढ़ा था जो कि गूगल कम्पनी के बारे में है। वैसे तो गूगल से हम रोज ही रुबरू होते है, पर क्या है पर्दे के पीछे का गूगल?ये स्वीकार करना पड़ेगा कि निरंतर बदलते हुई जीव के बारे मे थोड़ी पुरानी पुस्तक पढ़ने के खतरे होते हैं पर फिर भी। वैसे गूगल के उपर अब कई व्यक्तियों ने पुस्तकें लिख डाली है, पर जान शायद पहले लेखक है जिनकी पुस्तक काफी प्रचलित हुई। वैसे सच कहा जाए तो किताब केवल गूगल पर नहीं, गूगल के प्रतिद्धंदियों के बारे मे भी है, मगर गूगल के प्रतिद्वंदियों की फेहरिस्त काफी लंबी है।(अभी हाल में गूगल ने अपने मुख्यालय वाले माउंटेन व्यू कस्बे को मुफ्त ताररहित अंतरजाल का तोहफा दिया पर जाहिर है ये सब इस पुस्तक की चर्चा से बाहर है)
थोड़ा इंतजार करें क्योंकि लिखने से पहले मै स्वयं इसे दुबारा पढ़के आज के संदर्भ मे देखना चाहता हूँ।

'द हिन्दु' में नीला सागर रणनीति पर चर्चा

द हिन्दु के आज के संसकरण में भी 'ब्लु ओशन सट्रैटेजी' पर चर्चा है। विस्तार के लिए यहाँ जाएँ।

शुक्रवार, अगस्त 18, 2006

उत्कृष्ट - ब्लू ओशन स्ट्रैटेजी

पुस्तक का मुख्य पृष्ठ
आखिरकार अमरीकी बुद्धिजीवियों को युरोपीय बुद्धिजीवियों से टक्कर मिल रही है। मुआब्रान्य् और चान किम की पुस्तक ब्लू ओशन स्ट्रैटेजी या हिन्दी में कहें तो नीला सागर रणनीति कुछ ऐसा ही प्रयास है। दोनो लेखक युरोप के विशिष्ट माने जाने वाले प्रबंध संस्थान इनसीद में नामी शिक्षक हैं। पुस्तक कितनी प्रचलित है यह इससे अनुमान लगाएं कि इसकी ३२ भाषाओं दस लाख से ज्यादा प्रतियाँ बिक चुकी है और पुस्तक सामरिक व्यापारिक सोच में अपना स्थान बना चुकी है।यदि इसकी प्रथम खासियत कहें तो लेखकों ने दुसरे विचारकों कि तरफ शुतुर मुर्गीय रवैया रखने कि बजाय उनके विचारों को भी उद्धृत किया है।जिम कॉलिन्स के बहुचर्चित शीर्षको को काफी आदर दिया गया है (हाँलाकि आलोचना भी छोड़ी नहीं)।

पुस्तक सामरिक पटल के संकल्पना के इर्द-गिर्द घूमती है। नीला सागर यानी एसा खाली स्थान जहाँ कोसों तक आपका ही वर्चस्व हो। कहते हैं कि प्रबंध की पुस्तकों की प्रवृति होती है कि वे नामी और सफल उद्धमों के इतिहास का वर्णन मात्र होती है। पढ़कर निचोड़ निकालें तो शायद अच्छी भावना के अलावा कुछ कहीं रहता़! पर इस पुस्तक में सामरिक विश्लेषण के औजार है।इस उत्कृष्ट पुस्तक में व्यक्त किया गया है कि उद्योग जगत में सफलता के लिए हर उद्धम को एक ऐसा नीला सागर तलाशना होता है जहाँ उसका कोई सानी ना हो। यानी, अपनी संगठन की मजबूती के अनुसार अपना बाजार अनुभाग तलाशना होगा। सबसे अहम यह है कि प्रतियोगियों के भी मजबूती को उसी सामरिक पटल पर तोलना होगा। किन्तु केवल वर्णन ही नहीं पर उसके लिए औजार भी है। महत्वपूर्ण ये है कि आम पुस्तकों कि तरह यह किताब केवल पीछे की ओर नहीं देखती पर आपको भविष्य के लिए सोचने का एक नज़रिया भी देती है। यह एक भारी फर्क है।

दूसरा, अमरीकी लेखको की प्रवृति होती है कि जहाँ उदाहरण भी देने हो, वे अमरीका के ही हो। पर सफल उद्धम तो दुनियाँ भर मे पाए जाते हैं और मुआब्रान्य् और चान किम की इस तरह के क्षेत्रीय बंधन से बंधे नहीं दिखते।

तीसरा, इस पुस्तक मे भारी भरकम शब्दों का प्रयोग भी कम ही है।

क्या पुस्तक प्रतिस्पर्धा को अप्रासंगिक बनाने के बारे मे है? या होड़ में आगे लिकलने के बारे में? अथवा पोजिशनिंग के बारे में। या फिर आपके उद्धम को व्याख्या करने के बारे में? वास्तव में नीला सागर रणनीति सभी सामरिक तत्वों का समिश्रण है जो उद्योग प्रतिस्पर्धा में इस्तेमाल होते हैं। छोटे में कहा जाए तो 'आगे कैसे बढ़े'। पर ध्यान रहे, इसे पढ़ते समय आपको एक मुख्य कार्यकारी अधिकारी के नजरिए से सोचना होगा।किताब भारतीय मानको से थोड़ी महंगी है। पर यह आप बार बार पढ़ेगे यह यकीन करें। हमने एक उत्कृष्ट पुस्तक की बात की है।(चलते चलतेः उन ३२ भाषाओं मे एक भी भारतीय भाषा नहीं है, यह दुख की बात है।)
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शब्दकोष.कॉम तथा युनिनागरी टंकन पटल की मदद से।

गुरुवार, अगस्त 17, 2006

अगली चर्चा ' नीला-सागर रणनीति'।

मुझे कुछ दिन पहले 'ब्लू ओशन स्ट्रैटेजी' यानी 'नीला-सागर रणनीति' पढ़ने का मौका मिला। अगली चर्चा हम इसी किताब पर करेंगे, जल्दी ही। यदि आपने ये पुस्तक पढ़ा है तो आपके विचारों का स्वागत है।

सोमवार, अगस्त 14, 2006

चिट्ठाकार महा-असम्मेलन

१८ अगस्त की जानकारी ये है कि चिट्ठाकार असम्मेलन अब आई. आई. टी. मद्रास प्रांगण की बजाय टाईडेल पार्क में आयोजित होगा। बहरहाल वक्ताओं कि फेहरिस्त काफी प्रभावशाली होती दिख रही है।
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आई. आई. टी. मद्रास प्रांगण मे चिट्ठाकार महा-असम्मेलन ("unconference") का आयोजन ९ एवं १० सितंबर को होने जा रहा है। इस सम्मेलन में चिट्ठाकारी कि दुनिया के दिग्गजों के शामिल होने की सम्भावना है और कार्यक्रम काफी मजेदार रहेगा।

अधिक जानकारी www.blogcamp.in से ली जा सकती है।

शनिवार, अगस्त 12, 2006

फ्रीकोनोमिक्सः एक चर्चा


मैने चौथी बार भी फ्रीकोनोमिक्स पढ़ ही डाला़। जैसा मैने पिछली प्रविष्टि में कहा है, यह एक बहुचर्चित किताब है।इसके लेखक लेविट एक प्रसिद्ध अर्थशास्त्री है, तथा डुबनर एक पत्रकार हैं। दोनो ही अमरीका के हैं। इसके शीर्षक से यह आभास होता है जैसे कोई अर्थशास्त्र की किताब है। दरअसल इसमे कुछ ऐसी घटनाओं का विष्लेशण है जो की समाज में रोज होती हैं, किन्तु उनके आर्थिक पहलु को आमतौर से परखा नहीं जाता। इस पुस्तक में विष्लेशण के लिए, गणित / सांख्यिकी की तकनीकों का खासा इस्तेमाल किया गया है। शायद इसी लिए कई लोगों का यह कहना है कि यह अर्थशास्त्र है ही नहीं, पर मैं इस विचार से सहमत नहीं मानता। लेखकों ने अर्थशास्त्र के सूक्ष्म पहलुऔं (माईक्रो-इकोनोमिक्स) का अध्ययन करने की कोशिश की है। उदाहरण के लिए, यदि आप यह जानना चाहते हैं कि १९९० के दशक में अमरीका में हो रहे अपराध और दो दशक पहले लड़े गए एक मुकदमे के बीच क्या रिश्ता है, अथवा अमरीकी समाज के विभिन्न समाजिक / आर्थिक वर्गों में नामों के प्रचलन का क्या सांचा है।

पुस्तक काफी रोचक है और कब आप अंत तक पहुँच जाते है यह अहसास भी नहीं होता। यही शायद इस पुस्तक की सबसे बड़ी त्रुटि है। एक बार किसी ने लेविट से उनके एकीकरणीय प्रसंग के बारे पूछा था। शायद इस पुस्तक को भी यही कमी है। दुसरी कमी अर्थशास्त्र को लेकर ही है। कहते है कि अर्थशास्त्री भूतकाल की भविष्यवाणी करते है, भविष्य की नहीं।इस पुस्तक को पढ़के के बाद भी आप शायद यही महसूस करेंगे। क्या मैं पाँचवी बार इसे पढ़ने का विचार रखता हूँ? शायद फिलहाल नहीं!

मंगलवार, अगस्त 08, 2006

फ्रीकोनौमिक्स - आगे

आगे हम जिस पुस्तक की चर्चा करने जा रहे हैं उसका शीर्षक है फ्रीकोनौमिक्स। ये पुस्तक लेविट तथा डुबनर की लिखी है और आजकल बहुत चर्चा में है। (किताब मैं तीन बार पढ़ चुका हूँ पर ये समझ न आया कि है किस बारे में (!) , वैसे शीर्षक का अनुवाद करें तो अनूठा अर्थशास्त्र निकलेगा)।

थोड़ा इंतज़ार करें। यदि उत्सुकता ज्यादा हो तो फ्रीकोनौमिक्स.काम पर जाएँ।

सोमवार, अगस्त 07, 2006

कार्लोस घोन की ' द शिफ्ट' - मेरी राय


श्री घोन, १९९९ में रेनो द्वारा निसान को भेजे गए थे, जिसमे रेनो की ४४% हिस्सेदारी है। उस समय निसान भारी घाटे में थी और अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही थी। जापान में दुसरी कम्पनियाँ आगे निकलती जा रही थीं। उस समय घोन रेनो के दुसरे नंबर के अधिकारी थे और अपनी धाक जमा चुके थे।
लेबनानी मूल के ब्राजीली परिवार मे जन्मे घोन ने फ्राँस मे शिक्षा पाई और वे एक मेधावी छात्र रहे हैं। यह किताब उन्होंने फेलिपे रीज् के साथ लिखी है। उनके नेतृत्व में निसान की हालत में ईतना परिवर्तन हुआ कि २००५ में घोन रेनो वापस बुला लिए गए, पर नंबर एक के ओहदे पे। आज वो निसान और रेनो दोनो के मुख्य कार्यकारी अधिकारी है, और व्यापारिक कायापलट में महत्वपूर्ण हस्तियों में गिने जाते हैं।
वैसे जेनेरल इलेक्ट्रिक के जैक वेच व्यापारिक कायापलट के बादशाह माने जाते रहे है और कुछ तुलना तो बिलकुल जरूरी है।यदि 'न्यूट्रौन जैक' (वेच) और 'ल कास्ट किलर' (घोन) की तुलना की जाए तो घोन काफी शिष्ट भलेमानस प्रतीत होते है पर ( कम से कम लिखने के अन्दाज् मे तो है ही) । पर दोनो के दोनो ही तर्कशक्ति में माहिर हैं।घोन की किताब पढ़के ये भी पूछ सकते हैं कि इसमें नया क्या है। सब कुछ एक पुराने नुस्खे का ही तो है - लागत घटाऐँ, बाजारांश बढाएँ, बाजार में नई किस्म की गाड़ियाँ लाएँ, फिर समस्या है कहाँ? पर धोखे में मत आईए, घोन हर छोटी-बड़ी चीज का वर्णन नहीं करते। किताब से ये भी स्पष्ट होता है, कि घोन का काम करने की शैली काफी पारदर्शी है, ताकि लोगों के लिए अटकलबाजी का मौका ना मिले। आप ये भी पाएँगे की घोन किसी सभ्यता में काफी आसानी से ढाल लेने की क्षमता रखते है। जापान और जापानी कम्पनियाँ पश्चिमी माहौल से बिलकुल अलग होती हैं फिर भी घोन ने यहाँ भी सफलता अर्जित की। शायद इसका कारण उनका बचपन से ही अलग-अलग सभ्यताऔं से जुडे रहना है।
पुस्तक में परिष्कृत भाषा की प्रयुक्ति है और लिखने की शैली काफी सरल।पुस्तक फ्रासिसी भाषा से अनुदित है इसलिए भाषायी स्पर्श कहीं कहीं पर थोडी बनावटी लगती है। पर यदि लेखक श्री घोन जैसा कद्दावर हो तो आप कोई चीज् को हलके से नही ले सकते। यदि आप व्यापार में रुचि रखते हों तो पढ़ डालिए।

मंगलवार, जुलाई 25, 2006

कार्लोस घोन की ' द शिफ्ट'

क्या आपने नामी कार कम्पनी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी कार्लोस घोन द्वारा लिखी ' द शिफ्ट' नाम की किताब पढ़ी है? श्री घोन मामूली मुख्य कार्यकारी अधिकारियों से थोड़ा अलग हैं क्योकि वो एक नहीं दो कार कम्पनियों के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं, वह भी दुनिया की दिग्गज गिनी जाने वाली निसान ( जापानी ) और रेनो (फ्रांसिसी )। गौर करने वाली बात है कि आजकल दुनियां कि नामी फो्र्ड और जेनेरल मोटर भारी घाटे से निकलने के रास्ते तलाश रहीं है। दूसरी ओर जापानी कम्पनियाँ काफी फायदे में हैं। श्री घोन एक मानी हुई शख्सियत हैं और मुनाफा / नुकसान के गणित में प्रवीण माने जाते हैं। हाल में जेनेरल मोटर के कुछ शेयरधारको ने जेनेरल मोटर को श्री घोन के अनुभव का लाभ उठाने की सलाह भी दे डाली है।किताब अमूल्य है, मौका पाते ही पढ़ें।

रविवार, जुलाई 23, 2006

"वैसे तो आई डू नाट राईट हिन्दी...."

वैसे तो कई प्रकार के ब्लाग उर्फ चिट्ठे दुनिया भर के कोनों से लोगों द्वारा चलाए जा रहे हैं पर व्यापार और तकनीकी विषयों पर लिखने वाले लोग कम हैं। यह एक बडी़ लकीर है। जो लोग इन विषयों पर पैठ रखते हैं, वो शायद हिन्दी भाषा भूल जाते हैं, या कुन्ठित हो जाते हैं। अपनी सीमित साहित्यिक पकड़ को ध्यान में रखते हुए, हम् कुछ तकनीकी और व्यापारिक विषयों पर ही अपनी बिना मागीं राय रखेंगे। बर्दाश्त करें!

शुक्रवार, जुलाई 21, 2006

शुरुआत, एक प्रयास की।

मुझे ऐसा लगा कि अपनी मातृभाषा में अपने विचारों को अभिव्यक्त करने की क्षमता को परखना चाहिए। इसलिए यह छोटा सा प्रयास।