सोमवार, सितंबर 24, 2007

और धोनी के लड़कों ने धो डाला!

भारत ट्वेंटी ट्वेंटी विश्व कप जीत गया. अगर आपने रोमांच से अपनी उँगलियाँ चबा ली हो तो डॉक्टर से दिखा लें. हो हो हो हो हो हो हो हो!!!!!!!!!!!!!!!!!!

शनिवार, सितंबर 22, 2007

युवराज के छक्के और अंतर्जाल युग

किसने सोचा था की युवि के बल्ले से एक ही ओवर में छे छक्कों की बरसात होगी . मगर ऐसा हुआ. आज से कुछ वर्ष पहले किसने सोचा था की ऐसे अनुभव को जितनी मर्जी चाहो देखो वाली सुविधा आ जायेगी. तो देखिये ऐसे जाडुई क्षणों को, जितनी बार मर्जी हो.स्टुअर्ट ब्रॉड के पसीने निकलते साफ दिखाई दे रहे है. आनंद लें.





गुरुवार, सितंबर 06, 2007

एक रेलयात्रा जो भुलाए नहीं भूलती

१९९८ में मैं और मेरा दोस्त विनीत ऊर्फ भय्यु बक्सा सामान सहित दिल्ली से अपने घर जबलपुर आने वाले थे। हमारी पढाई खत्म हो चुकी थी और हम बड़े उत्साह में थे।दोस्तों से बिछड़ने का दुख भी था।हमें निजामुद्धीन से गाड़ी पकड़नी थी और जैसा कि होता है, हमारे कुछ दोस्त हमे छोड़ने स्टेशन तक आए थे। कहते थे, भेज के ही दम लेंगे।

थोड़ी भीड़ अधिक थी। फिर भी हम अपनी सीट पर पहुँच गए। शाम का समय था। गोंडवाना एक्सप्रेस मात्र दस पाँच मिनट देर से चल पड़ी।

थोडी देर में एक परिवार के लोगों ने हमसे बर्थ बदलने का आग्रह किया।थोड़ा ज्यादा बड़ा दिखने वाला एक खुशकुमा परिवार था। जब हमे पता चला कि उनकी दो बर्थ दूसरे डब्बे में है, तो हमने मना कर दिया। फिर वो हमारे इर्द गिर्द अपनी बर्थों पर बैठ गए। दो बच्चे भी थे। थोड़ी चिल पौं ज्यादा थी। हम थोड़ा परेशान थे। थोड़ी देर में सूर्यास्त हो गया। उन्होंने हमसे फिर आग्रह किया।वो अपना टिकट भी दिखाने लगे। हमनें नकली बड़प्पन दिखाने का नाटक करते हुए टिकट ना देखने की बात कही। फिर भी ही ही करते करते कोने से टिकट पर ट्रेन का नंबर, तारीख और बर्थ नंबर देख ही लिया। हमने सोचा कि शांति मिलेगी, सो बात मान लो।बस निकल लो यहाँ से।

स्थान बदल लिया गया। उनमे से एक सज्जन हमारे साथ नए स्थान तक आए। बड़े भले आदमी दिखे। हम भी ठहरे जबलपुरी, सो एक बक्सा उनसे भी ढुलवा लिया। किसी कारणवश डब्बों के अन्दर से जाने वाला रास्ता बन्द था, सो एक स्टेशन पर ट्रेन के रुकने पर पूरी प्रक्रिया कर ली गई। टी टी वहीं खड़ा था, सो उस भले सज्जन ने उन्हे सूचित भी कर दिया। हवा अच्छी थी, हमने खाना खाया और फिर लंबे हो लिए।पता ही नहीं चला कि कब नींद आ गई।
देर रात कुछ आवाज सुनाई पड़ी। हमने आदत के मुताबिक सबसे पहले ये निश्चित किया कि सारा सामान सुरक्षित है।
दो सज्जन मेरे दोस्त विनीत को बर्थ खाली करने को कह रहे थे। मैं चौड़ा हो गया। पूछा, टिकट है आपके पास। उन्होंने टिकट आगे कर दिया। हमने बत्ती जलाके पूरे टिकट को पढ़ा। कोई त्रुटि नहीं मिली। हमने फिर भी कहा, अभी टी टी से पूछ लेते हैं। टी टी साहब ने उनके टिकट को सही करार दिया। टी टी भी दूसरे दिखे। शायद पिछले टी टी की ड्यूटी खत्म हो चुकी थी और ये नए सज्जन थे। हमने उन्हे माजरा समझाया। फिर बता चला, कि जिन लोगों से हमने बर्थ बदली थी, उनका आरक्षण तो कुछ स्टेशन पहले तक ही था। यानि उन्होंने वहीं तक का टिकट लिया था।
खीस निपोरते हुए हमने दावेदारी वाले नए यात्रियों को दोनो बर्थ थमा दी। उन्होंने हमे बैठने का स्थान भी दिया, पर हम पसर लिए, हम कोई बिना रिजर्वेशन वाले नहीं, हम अपने पुराने बर्थ पर जाके सोने का कार्यक्रम जारी रखेंगे।

हम गेट पर गाड़ी के रुकने का इंतजार करने लगे। काली रात, ठंडी हवा और आधी नींद मे मिला इंसल्ट! फिर एक छोटे से स्टेशन पर गाड़ी रुकी और हम अपने सामान को घसीटते हुए अपने बर्थ वाले डब्बे की तरफ अतितीव्र गति से बढ़ लिए। पहुँच भी गए और गाड़ी के खिसकते खिसकते सामान सहित चढ भी गए।

पर ये क्या! यहाँ तो कोई और लोग सो रहे थे। सो हमने भी उसी ताव से उन्हे उठाया। गलती मानने की बजाय, ये लोग तो हमसे भिड़ लिए। हम ही से ये कहने लगे कि टिकट दिखाइये। हमने कहा आप दिखाइये।बहस होने लगी। तब तक टी टी साब भी आ गए। आते ही हमने पूरी कहानी सुनाई, सोचा समाधान सामने है, बस अभी सोने के लिए बर्थ मिल जाएगी। टी टी साब हम्ही पर पिल पड़े, नो शो था सो हमने पिछले स्टेशन से अलाट कर दिया। ये अब आपकी बर्थ नहीं रही। जिससे शिकायत करनी हो कललो।

अब क्या किया जाता। अगले चंद घंटे हमने अपने बक्से पर बेसिन के पास बैठकर काटे। फिर जबलपुर आया तो मैने और विनीत ने ये किसी को ना बतानी की ठानी। सबको यही बोला यात्रा मजे मे थी, रिजर्वेशन जो करवा रखा था!

मंगलवार, अगस्त 07, 2007

घागरो जो घूम्यो

कमाल हो गया दोस्तों। एक करोड़ से ज्यादा लोग बाढ से प्रभावित हैं पर हमारी मीडिया को कोई चिंता नहीं। सी एन एन और बी बी सी पर ताबड़ तोड़ रिपोर्टिंग जारी है, कहते हैं संयुक्त राष्ट्र ने भी इसे पिछले कुछ दशकों का सबसे ज्यादा भयंकर बाढ बताया है। पर अपना कोई देसी चैनेल को देखिए, चलते फिरते में इस खबर को निपटा देते हैं। हाँ नेतागण अपने उड़न खटोले पर घूम रहे हैं, मर्जी आती है तो मजबूती जाँचने के लिए सड़क पर ही उतार लेते है। भई साईट इंसपेकसनवा जो जरूरी रहल। का कहल जाइ, हालत खराब बा।घाघरो जो घूम्यो।

गंगा, सोन, गंडक, सब उफनते आ रहीं हैं। दिक्कत की बात ये है कि नेतागण का क्या कहें, बहते पानी में भी राजनीति जारी है।ऐसे समय में माननीय नीतिश जी का मौरिशस दौरा दो देशों के बीच भाईचारा बढाने के लिए जरुरी था।जब १०० करोड़ के देस की बात आती है तो एक आध करोड़ की तकलीफ कहाँ बीच मे ला रे हो भाई। बड़ा मुसकिल है भाई, पिस गया बिहारी, एक तरफ चारा, दूसरी तरफ भाईचारा। घाघरो जो घूम्यो।

दरभंगा शहर की हालत खराब है। समस्तीपुर के पुराना पुल के उपर से पानी बह रहा है। पटना के कंकडबाग मुहल्ले की हालत वहीं के लोग समझ सकते है। पर चिन्ता की कोनो बात नहीं। दो तीन हेलीकाप्टर खाने के लिए चने के पैकेट गिरा रहे हैं।एक करोड़ लोगों के लिए। घाघरो जो घूम्यो।

सोचिए उन लोगों का जो अपने रिश्तेदारों से कई दिनों तक चाहने के बावजूद भी फोन पर नहीं बात कर सकते है। फोन खराब है। कहते हैं जब नेपाल से पानी बहकर आता है तो कई जिलों मे तबाही मच जाती है। पर नेपाल तो मित्र देस है। कैसे हम उन्हे अपनी तकलीफ समझाएँ। उन्हे बुरा लग गया तो दोस्त नाराज हो जाएगा। घाघरो जो घूम्यो।

पिलानिंग? कौचि का पिलानिंग? बाँध बनाके का होगा? पानी पर स्टियरिंग व्हील तो नहीं है जो कहीं भी मोड़ दिया। और का इंद्र भगवान किसी के मौसा लगते हैं का? भगवान है, दू लोटा पानी जादा बरस गया तो काहे बिलबिला रहा है भाई? घाघरो जो घूम्यो।

मंगलवार, जुलाई 24, 2007

कलाम साहब, सलाम

कलाम साहब आज से भारत के भूतपूर्व राष्ट्रपति कहलाएँगे। राजदीप सरदेसाई ने अपने चिट्ठे पर हाल के एक समारोह के बारे मे लिखा है कि किस प्रकार कलाम साहब ने पत्रकारों की भी क्लास ली, और नाराज होने कि बजाए, उन्हे भी आनन्द आया।यहाँ चेन्नई में सुगबुगाहट और उत्साह के मिश्रण का माहौल है। अन्ना विश्वविद्यालय में, जो तमिल नाडु का प्रमुख तकनीकी शिक्षा केन्द्र है, में अपेक्षा का माहौल है। कहते हैं कलाम साहब यहाँ अपने पठन-पाठन को जारी रखेंगे। बिहार से खबर ये आई थी कि नितीश बाबु कलाम साहब को पुर्नजागृत नालन्दा विश्वविद्यालय के विसिटर बनने के लिए आग्रह कर रहे हैं। मेरे लिए दोनो बड़ी खुशी की स्थिति है, क्योंकि मैं अन्ना विश्वविद्यालय के सड़क पार भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मद्रास के प्रांगण मे रहता हूँ और मेरा पैतृक स्थान नालंदा है।
लो, कलाम साहब का नया जालस्थल भी तैयार हो रहा है। ये कल से चालु हो जाएगा। कमाल की बात ये है कि अभी इस जालस्थल पर कोई सामग्री तो नहीं पर फिर भी पेजरैक ४ है (पेज रैंक कैसे देखें)। शायद भारत के इस महान नायक को गूगलदेव भी सलाम कर रहे हैं। जी हाँ, कलाम साहब अब राष्ट्रपति भले ना कहलाएँ, पर नायक तो वे हैं ही।

( व्यंग्य पढें - राष्ट्रपति कलाम और मुशर्रफ के बीच एक काल्पनिक शिखर वार्ता)

मंगलवार, जुलाई 17, 2007

मेरी हिन्दी चिट्ठा यात्रा का एक वर्ष

गत वर्ष लगभग आज के ही दिन मैने उत्सुकतावश ढूंढने हिन्दी टंकन के तरीके ढूंढने की कोशिश की थी। हमे रमण कौल जी के युनिनागरी ने प्रभावित किया और मैने २१ जुलाई को डरते-डरते एक लाइन का पोस्ट लिखा। डर लगे भी तो ना क्यों - उन्नीस वर्ष बाद जो हिन्दी में लिखकर अभिव्यक्त करना आसान नहीं है।
खैर जैसे ही लिखा, कुछ उत्साहवर्धक टिप्पणियाँ भी नामालूम कहाँ से आ गई। फिर एक और पोस्ट लिखा, जो कुछ लाइनो का था। फिर नारद जी से मुलाकात हुई। बात अच्छी लगी और हमने डरते-डरते अपने चिट्ठे को शामिल करने का आवेदन डाला।
मैं ये सोचता था कि मेरे लिए हिन्दी मे लिखना काफी मुशकिल रहेगा क्योंकि मैं भारत के एक अहिन्दी भाषी प्रदेश में रहता हूँ, जहाँ हिन्दी के समाचारपत्र तो क्या, दुकानों के बोर्ड भी नहीं दिखाई पड़ते है। फिर आखें खुली और मालूम चला कि कई लोग तो अपने बेहतरीन हिन्दी चिट्ठे भारत के बाहर से लिख रहे हैं।
फिर वर्तनी कि चिंता सताने लगी कि साहब अगर गलत हिज्जे लिखे तो क्या सोचेगी जनता। फिर शब्दकोष से मुलाकात हुई तो तो काफी समस्याओं का निवारण हुआ।
तबतक हमें हिन्दी चिट्ठाजगत से परिचय हो चुका था। समझ में ये आया कि वैसे तो सभी त्रुटिहीन पोस्ट पढ़ना चाहते हैं पर यदि एक-आध त्रुटि रह भी जाए तो कोई परेशानी वाली बात नहीं है। और फिर हमे अंग्रेजी चिट्ठों पर भी व्याकरण और हिज्जे की धज्जियाँ उड़ती दिखाई देने लगे और हमने समझ लिया कि भई ठीक है।
जब हम चेन्नई ब्लागकैंप मे गए और वहाँ पर भारतीय भाषाऔं मे ब्लागिंग पर बातचीत हुई तो हमने अपने-आप को हिन्दी चिट्ठाकारी के बारे में, कुछ पल के लिए ही सही बोलता हुआ पाया। जी हाँ मैं वही हूँ जिसने दसवीं की परीक्षा के बाद हिन्दी पढने-लिखने से दूर रहने की ठानी थी !
आज हिन्दी में दनादन चिट्ठे लिखे जा रहे हैं। ज्यादातर सामयिक और सामाजिक विषयों पर लिखे जाते हैं।एक आध तकनीकि विषयों पर, कुछेक व्यापारिक विषयों पर भी उभर रहें हैं। कविताएँ भी पढने को मिल जाती है यानि स्थिति काफी मजेदार है।हिन्दी चिट्ठों के माध्यम से मैने देखी है एक बिलकुल अलग दुनियाँ। धन्यवाद बंधुओं। साफ है कि बात निकली है तो दूर तलक जाएगी।छोटे में आज इतना ही।

चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी

मंगलवार, जून 12, 2007

टिप्पणियों के संकलन को ब्लागर पर दर्शाना

साथी ब्लागर उनमुक्त जी ने पूछा है कि ब्लागर में किस तरीके से पाठकों की टिप्पणियों के संकलन को चिट्ठे पर दिखाया जा सकता है (मिसाल के लिए दाहिने देखिए- प्रतिक्रियाएँ)। वास्तव में बड़ा ही आसान तरीका है।दरअसल आपके चिट्ठे की पोस्टों की तरह ही पाठकों की टिप्पणियों का भी एक फीड होता है। आप टेम्पलेट में जाकर एक नया पेज एलिमेंट डालें जो कि फीड के लिए हो। फिर फीड का स्रोत ये बताएँ - http://abcxyz.blogspot.com/feeds/comments/default । सेव कर दें। बात खत्म। ध्यान देने वाली बात ये है कि ये कुछ घंटो के अंतराल पर ही पुर्नप्रकाशित होती है।

ले बलइया - सटाक

अब जब देसभर के क्रिकेट प्रेमी ये सोच ही रहे थे कि भारतीय क्रिकेट बोर्ड का क्या किया जाए तो जोर की आवाज आई सटाक। मालूम चला ये चाँटा ग्राहम फोर्ड साहब ने भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के गाल पर रसीद किया है। जोर का झटका धीरे से लगे। नहीं नहीं धीरे का झटका बड़े जोर से लगे, आह। लो फिर गूंज उठी - सटाक।

गूगलंदाजी-३: आईये गूगल साइटमैप्स का महत्व जानें

हम सब चाहते हैं कि हमारा चिट्ठा काफी प्रचलित हो। इसका एक तरीका है कि नारद जैसे फीड संग्रहक पर डालें जहाँ से नए आलेख के बारे मे जानकर पाठकगण आपके चिट्ठे पर आवें। दूसरा तरीका एक दूसरों के ब्लागरोल पर आने कि कोशिश की जाए जिसके बारे में हम पहले बात कर चुके हैं। पर ध्यान देने वाली बात ये भी है कि धीरे धीरे गूगल पर हिन्दी में भी खोज का प्रचलन बढ रहा है जो कि एक अच्छी बात है।ऐसी स्थिति में आप चाहेंगे की आपका चिट्ठा गूगल पर दिखे। आप ये भी जानने को उत्सुक रहेंगे कि गूगल ने आपकी साइट को कब पिरोया और किन खोजों में आपकी साइट किस पायदान पर दिखती है। आपके ब्लाग का इस औजार से रिश्ता साधने से गूगल देवता भी प्रफुल्लित होते हैं क्योंकि इसके माध्यम से उन्हें भी आपके नित नए पोस्टों के आने की सूचना मिलती रहती है। ये महत्वपूर्ण बात है।गूगल साइटमैप्स एक टूल है जो इसी के लिए बनाया गया है। आइए इसे देखा जाए।
उपर दाहिने के चित्र से आपको मेरे इस चिट्ठे पर आ रहे कुछ यातायात का आभास मिलेगा, साथ ही ये दिखेगा कि गूगल पर खोजों में किन शब्दों द्वारा लोग यहाँ आ रहे है। तो क्या करना होता है आपको? बड़ा सरल है।
सबसे पहले अपने ब्लाग का पता लिख डालिए, जैसा कि इस चित्र मे दर्शाया गया है।

फिर आपको ये स्थापित करना होता है कि आप ही इस ब्लाग के स्वामी है। यदि आप बलागर पर अपना चिट्ठा चलाते हैं तो फिर आपको टेम्प्लेट के हेड टैग में साइटमैप द्वारा दिया मेटा टैग डालना होता है। यदि आप होस्टेड वर्डप्रेस चला रहे हैं तो आप रूट में एक फाइल डालके भी अपने चिट्ठे पर अपना सवामित्व स्थापित कर सकते हैं।

अगला कदम काफी महत्वपूर्ण है इसलिए ध्यान दें - अब आपको अपने ब्लाग के साइटमैप की ओर इशारा करना होता है। अगर आप बलागर पर हैं तो लिखे http://aapkablog.blogspot.com/atom.xml. यही आप वर्डप्रेस पर हों तब लिखे http://aapkablog.wordpress.com/atom.xml.
बस अब आपका चिटठा सेट हो गया। इस साइटमैप को गूगलदेव निगरानी करते रहते हैं। यदि आप नया पोस्ट लिखते हैं तो यहाँ एक एंट्री हो जाती है जिसे गूगल बाबा को सूचना हो जाती है और मकड़े आपके चिट्ठे का भ्रमण करने निकल पड़ते हैं।
अब आगे आपको कुछ रिपोर्टें बराबर मिलती रहेंगी।
मसलन गूगल के मकड़ों ने कब आपके ब्लाग का विचरण किया।


और कि गूगलदेव आपके पेजों को कितना महत्वपूर्ण मानते हैं।


यहीं पर सारी बात खत्म नहीं होती आपको और भी जानकारियाँ मिलती रहती हैं जैसे आपके चिट्ठे को किन और साइटों और चिट्ठों से लिंक मिली हुई है आदि।
यदि आप अपने चिट्ठे को गंभीरता से लेते हैं तो मेरा आग्रह है कि जल्द से जल्द गूगल साइटमैप्स की स्थापना आपके चिट्ठे पर की जाए। और हाँ, ध्यान रहे कि पहली बार आपके चिट्ठे संबंधी रिपोर्टें दिखने में कुछ हफ्तों का समय भी लग सकता है, निराश बिलकुल ना होएँ। और हाँ, हमें आपकी प्रतिक्रियाओं का इंतजार रहेगा।

बुधवार, मई 30, 2007

वर्डप्रेस वालों, जरा ध्यान से सुनो

ये पोस्ट उन लोगों के काफी काम की है जो कि वर्डप्रेस.काम पर अपना चिट्ठा चलाते हैं। पिछले समय में कुछ ऐसे परिवर्तन हुए हैं जिससे आप बिना होस्टिंग वगैरह के झमेले मे पड़े ना केवल अपने चिट्ठे को अपने डोमेन पर कुछ ही समय मे चलता हुआ देख सकते है, बल्कि इसी डोमेन पर गूगलदेव की मदद से ई-मेल सेवा भी चला सकते है। ये व्यक्तिगत ई-मेल सेवा बिलकुल जीमेल का अनुभव देगी यानि वही २ जी बी स्थान और वैसा ही काम करने का तरीका।तो कैसे होगा ये, जरा ध्यान से सुनिए।सबसे पहले तो आपको एक अदद डोमेन की आवश्यकता होगी। आप या तो इसे किसी रजिस्ट्रार से खरीद सकते है, या फिर सीधे वर्डप्रेस से खरीद सकते है।

हिसाब-किताबःवैसे यदि आप आपने डोमेन किसी रजिसट्रार से लेंगे तो हो सकता है कि इसमे ३०० - ४५० रुपए का खर्चा आता है। फिर आपके चिट्ठे को डोमेन से जोड़ने के लिए वर्डप्रेस वाले १० डालर, यानि तकरीबन ४०० रुपए लेंगे, यानि कुल मिला के ७००- ८०० का खर्चा बैठेगा। मगर यदि आप डोमेन भी वर्डप्रेस वालों की मदद से लेंगे तो कुल खर्चा १५ डालर, यानि ६०० रुपए। इसके बाद ये खर्चा हर साल आएगा। हाँ, गूगल देव आपकी डोमेन पर जी-मेल चलाने के लिए मुफ्त सेवा भी देते हैं ।

ब्लागर पर चिट्ठाकारी करने वाले, निराश न हो। आप जैसा की जानते हैं कि आज भी ब्लागर की मदद से अपना चिट्ठा अपने डोमेन पर चलाया जा सकता है ( जैसे की मेरा अंग्रेजी चिट्ठा - वर्डप्रेस के विपरीत गूगलदेव पैसे भी नहीं मांगते), पर जीमेल सुविधा नहीं। पर मेरा पूरा विश्वास है ये ज्यादा दूर नहीं , कुछ दिनों कि बात है। तो बढिए आगे और अपने अनुभव चिट्ठाकारों से बाँटिए। हिन्दी चिट्ठाकारी मे मस्ती का आलम बढते चला जाय, बस।

शुक्रवार, मई 25, 2007

गूगलंदाज़ी - २: ये चार सूत्र याद रखिये

कल शुरु गई चर्चा को जारी रखते हुए हम आज पेजरैंक से आगे कुछ और कदम चलेंगे। हम सभी ये जानने को उत्सुक रहते हैं कि सामने वाला हमारे बारे में क्या राय रखता है। यदि वो सामने वाला गूगलदेव हो तो उत्सुकता चौगुनी हो जाती है।
चलिये सबसे पहले ये देखते हैं कि गूगलदेव आपके चिट्ठे को पिरो रहे हैं या नहीं। काम की कड़ी है
ये जहाँ पर आप अपने चिट्ठे का लिंक देकर ये जान सकते हैं कि गूगलदेव ने आपके चिट्ठे के अस्तित्व को पहचाना या नहीं। नारद के बारे में ये प्रश्न पूछने पर गूगलदेव जो कहते हैं वो यहाँ देखें
दूसरा सूत्रः अगर हमारे चिट्ठे को गूगलदेव ने पिरो रखा है, तो उत्सुकता ये रहती है कि सारे पेज ले लिए या.....खास कर तब जब हम ये जानते हैं कि गूगल के 'मकड़े' सारे साइटों पर समान अंतराल से नहीं विचरते। तो आइये, ब्राउसर में गूगल लोड करें, फिर खोजी बक्से में ये प्रश्न दागें - site:narad.akshargram.com. परिणाम कुछ यूँ दिखेगां। आप परिणाम पृष्ठ पर दाहिने उपर ये भी देख सकते हैं कितने पृष्ठ पिरोये जा चुके हैं, यानि, गूगलदेव के अनुसार आपके साइट पर कितने पृष्ठ हैं।
तीसरा सूत्रः हम अब ये खोजने की कोशिश करेंगे कि यदि कोई गूगलदेव से हमारे चिट्ठे के बारे मे दो चार शब्द कहने का आग्रह करे तो वो क्या बतलाएंगे। यानि छोटा परिचय कैसे देंगे गूगल महाराज। उदाहरणार्थ हम समीर लाल के चिट्ठे को लेंगे। तो फिर से गूगल देव के खोजी पृष्ठ पर आ जाएँ। फिर आप खोजी बक्से में यूँ लिखे info:udantashtari.blogspot.com और Search को चटका दें। परिणाम यूँ आएगा
चौथा सूत्र के बारे में हम कल बातचीत कर चुके हैं। ये वही है जिससे आप आपने बैकलिंक का आभास ले सकते हैं। उदारणार्थ, यहाँ चटकी लगावें
कुल अर्थ ये है कि आप ये जानें कि दूसरे आपके बारे में क्या जानते हैं। हम ये चर्चा जारी रखेंगे, फिलहाल दफ्तर की ओर चलने का समय आ गया है। और हाँ, बात काम की है या नहीं , टिप्पणी करते रहें।

आपके ब्लाग का गूगल पेजरैंक देखने का सरल तरीका

पेजरैंक गूगलदेव का वो तरीका है, जिसके आधार पर गूगल देव ये तय करते हैं कि आपका जालपृष्ठ या चिट्ठा किसी गूगल खोज में कितना उपर या नीचे आता है। ये ०-९ के स्केल पर तय किया जाता है और ये रैंकिंग कुछ सप्ताह के अंतराल पर तय होती है।
शुरुआत मेः यदि आपका जालपृष्ठ या चिट्ठा नया है तो पहली बार का पेजरैंक प्राप्त होने में कुछ महीने भी लग सकते हैं।
क्या देखकर पेजरैंक तय होता है? गूगलदेव की पूरी महीमा तो जग जाहिर है पर पूरी कुंजी सर्वविदित नहीं है। आप ये मान के चल सकते हैं कि काफी हद तक पेजरैंक बैकलिंक के आधार पर तय होता है। यानि कि कितने अन्य जालपृष्ठों या चिट्ठों से आप के जालपृष्ठ या चिट्ठे को लिंक मिली हुइ है। यदि आप तुरत फुरत में ये जाँचना चाहें तो गूगल में इस प्रकार से खोजें link:narad.akshargram.com।या फिर उदाहरण के लिए यहाँ क्लिक करें । चूकि ये जानकारी भी समय समय पर ही अपडेट होती है तो हो सकता है कि कुछ हाल की बैकलिंक्स यहाँ ना दिखे।और हाँ, यदि आपकी साइट या ब्लाग को आपसे अधिक पेजरैंक वाले साइट या ब्लाग से बैकलिंक या ब्लागरोल पर स्थान मिला है, तो ये आपके फायदे मे जाता है।
आगे चलते हैं: यदि आप अपने जालपृष्ठ या चिट्ठे का पेजरैंक चेखना चाहें तो यहाँ दिये गये औजार का प्रयोग करें।
तो कैसे बढाएँ अपने बैकलिंकः बैकलिंक बढाने का सबसे जानदार तरीका ये है कि अपने चिटठे से दूसरों को लिंक देवे। जब लोग आपके चिट्ठे या पृष्ठ को देखेंगे तो आपको भी लिंक मिलेगी। (हाँ कभी कभार एक आध प्यार भरी घुढकी देने की जरुरत पड़ सकती है!)। आप अपने ब्लाग पर एक ब्लागरोल जरुर बनाएँ और दूसरों को स्थान दे।
यदि पाठकगण चाहेंगे तो आने वाले आलेखों में हम इससे जुड़े कुछ और बिन्दुओं पर चर्चा करेंगे।

मंगलवार, मई 22, 2007

राष्ट्रपति कलाम और मुशर्रफ के बीच एक काल्पनिक शिखर वार्ता

(राष्ट्रपति कलाम ने पाकिस्तान के राष्ट्रपति मुशर्रफ को वार्ता की दावत दे डाली। राष्ट्रपति मुशर्रफ भारत आने का मौका कैसे छोड़ते सो निमंत्रण सहज ही स्वीकार कर लिया गया। फिर श्री कलाम ने शर्त ये रखी कि बातचीत वीडियो कांफ्रेंस पर हो। अब फजीहत ये हो गई कि पाकिस्तान में वीडियो कांफ्रेंस की सुविधा तो कहीं है ही नहीं सो राष्ट्रपति मुशर्रफ जहाज पर बैठ वाशिंगटन को रुखसत हो लिये ताकि व्हाइट हाउस से वीडियो कांफ्रेंस कर सकें। तो पेश है ये बातचीत)
समय, भारतीय समयानुसार शाम के ६३० और वाशिंगटन में सुबह के ८ बजे।
कलामः सुप्रभात श्रीमान राष्ट्रपति महोदय
मुशर्रफः सुप्रभात कलाम साहब, कश्मीर...(कलाम नें बीच में ही काट दिया)

कलामः कश्मीर, बिलकुल। अभी थोड़ी देर पहले ही मै राष्ट्रपति भवन के बाग में था, जहाँ हाल ही में कश्मीर से लाए हुए कुछ पौधे लगाए गए हैं। जैसा की आप जानते हैं, प्राचीन भारतीय विधा आयुर्वेद में जड़ी बूटियों का महत्व बखुबी समझाया गया है।आप प्रण करें कि आप केवल जैविक तरीके से उगाए पदार्थों का सेवन करेंगे। आपके लिए मैं इस विषय पर एक कविता भी लाया हूँ। (फिर कलाम कप से कहवा की चुस्की लेते हैं और मुशर्फ मौका ताड़ कर फिर शुरु हो जाते हैं)

मुशर्रफः मेरे देश का बच्चा बच्चा चाहता है कि....

कलामः बच्चे, मैने अपने पाँच वर्ष के राष्ट्रपति काल में तकरीबन दो लाख बच्चों से संपर्क किया है। उन्हें विज्ञान और प्रौद्योगिकी का मह्त्व समझाया है और ये भी कि मेहनत से ही वे सफल हो सकते हैं। मेघालय की एक छात्रा नें मुझसे हाल ही में पूछा कि.......

मुशर्रफः बेहतर होगा कि.....

कलामः बेहतर तो टेलिमेडिसिन है। मेरे देश में २५० जिले, ४६७९ तालुके है, और ५२८३६४ गाँव।हमनें अपने गावों में टेलिमेडिसिन से सुसज्जित वैन भेजने की व्यवस्था की है जो कि सेटेलाइट के माध्यम से मरीजों को विशेषज्ञों कि सेवाएँ उपल्बध करातें हैं। इस प्रकार के विज्ञान का शानदार प्रयोग करते नागरिकों का भला हो सकता है।

मुशर्रफः एक छोटी सी गुजारिश है....

कलामः मैं छोटी चीजों कि बात करने ही वाला था। आने वाले समय में नैनोप्रौद्योगिकी का प्रयोग हर चीज में होगा। नैनोविज्ञान में अभी काफी काम होना है। मेरी सरकार ने ये देखते हुए देशभर में चार नैनोविज्ञान अनुसंधान संस्थान स्थापित किए है। नैनोविज्ञान ही क्यों, बायोटेकनोलोजी भी.......

मुशर्रफः मैं सामरिक.......

कलामः किसी व्यक्ति के सामरिक लक्ष्य को दृष्टि और काबिलियत से जोड़ने की जरुरत है। हाल ही में मैं आई आई एम गया था जहाँ का टापर एक ऐसा विद्यार्थी था जो बहुत छोटे से गाँव का था। जानते हैं वो क्यों टापर था?वो इस लिए टापर था क्योंकि उसने बचपन में ही लक्ष्य तय कर लिया था। फिर उसने गणित पर बड़ी मेहनत की। वही गणित जिसमें भारत में रामानुजम और आर्यभट्ट जैसे उस्ताद हुए।

(समय खत्म होने को आ रहा था । अब तक मुशर्रफ अपने तैयार किए गए डायलौग भी भूल चुके थे। बात उन्हें भी पते की लग रही थी। सोच रहे थे कि जब विज्ञान से ये सब संभव है तो ये सब किसी कमबख्त अधिकारीयों ने उन्हें क्यों नहीं बताया। गु्र्रा के उन्होंने अपने पीछे बैठे अधिकारी से पूछा - नोट्स ले रहे हो ना?

इस पर कलाम साहब नें ये बोलाः नोटस लेने कि बिलकुल जरुरत नहीं है। पंद्रह मिनट में इस बातचीत की प्रतिलिपि राष्ट्रपति भवन के वेबसाइट पर होगी। तीस मिनट बाद आपको एक एमपीईजी फाइल मेल कर दी जाएगी। या मेल आइ डी अगर आपके पास नहीं हो तो मेरे लड़के इसे यू ट्यूब पर डाल देंगे। अंतरजाल की सुविधा तो आपके पास होगी ना?

सोमवार, मई 07, 2007

अगले विश्व कप का कार्यक्रम घोषित- जरूर पढ़िए

आई सी सी ने इस बेहद लंबे चले विश्व कप से सीख लेते हुए अगले संस्करण के कार्यक्रम में थोड़ा बदलाव किया है।सर्वप्रथम उदघाटन कार्यक्रम होगा। इसके तुरंत बाद पुरस्कार समारोह बहुत धूम - धाम से होगा, जहाँ कप आस्ट्रेलिया को दे दिया जाएगा।

शनिवार, मई 05, 2007

चंद्रयान क्या वाकई चाँद पर जाएगा?

मेरे साथी चिटठाकार पंकज बेंगाणी ने हमेशा की तरह एक संदर्भ वाले विषय पर अच्छा आलेख प्रस्तुत किया है।मैं कोई खराब स्वाद नहीं पैदा करना चाहता पर फिर भी मुझे इसमें उत्साहित होने लायक कोई बात नहीं दिखती।कल के लाँच से ३२८ कि ग्रा का सेटेलाइट तकरीबन ३०० कि म की कक्षा में दागा गया। संचार और टी वी के लिए दो-तीन टन वजनी सेटेलाइट ३६००० कि मी की कक्षा में स्थापित करना होता है। असली पैसा तो इसी प्रकार के प्रक्षेपण में है। हम इस से अभी दशकों दूर हैं। इसी कारण से हमारे संचार उपग्रह अभी भी किराए की सवारी करते हैं। उधर चीन वाले दनादन राकेट दागते चले जा रहे हैं।उधर चंद्रयान की बात हो रही है। अपोलो-११ मिशन को १९६९ में चाँद पर जाने में चार दिन लगे थे। हमारे राकेट तो अभी दो चार घंटे की उड़ान भी नहीं भर पाते। तो २००८ में किस चंद्रयान के प्रक्षेपण की बात हो रही है। मेरा कहने का इरादा केवल ये है कि अभी इस क्षेत्र में अभी काफी रास्ता तय किया जाना बाकी है, बेहिसाब अपनी पीठ ठोकने की शायद अभी जरुरत नहीं।

मंगलवार, मई 01, 2007

अगर माइक्रोसाफ्ट वाले आईपाड बनाने लगें तो

आईपाड कहलाने बाला संगीत सुनने वाला यंत्र ऐप्पल नामकी कम्पनी बनाती है। ये उपकरण दुनिया भर में काफी प्रचलित हो रहे है। जरा देखिये कि यदि आईपाड ऐप्पल की बजाय माइक्रोसाफ्ट बनाने लगती तो शायद अनुभव थोड़े दूसरे होते, खास तौर पर पैकेजिंग कैसे की जाती। ये वीडियो काफी किसी कि कल्पना है, मगर काफी सोच विचार कर बनाया गया है। काफी मजेदार है, जरुर देखें।


सोमवार, अप्रैल 02, 2007

गूगल एप्स - एक अच्छा सौदा

कई महीने से मैं इस विषय पर लिखने को सोच रहा हूँ, पर थोड़ा आलस, थोड़ा समय की अभाव! पिछले साल गूगल नें जीमेल और पेज क्रियेटर पर आधारित एक सेवा शुरु कि है जिसे गूगल एप्स कहा जाता है। इसमे गूगल आपकी सेवा में आपकी अपनी डोमेन पर जीमेल जैसी सेवा तथा वेबसाईट बनाने की सुविधा उपलब्ध कराता है। अभी हाल ही में मैने इसका प्रयोग करके अपने कालेज के दोस्तों के लिये इमेल सुविधा को चालु किया है जिसका लाभ ३०० से भी ज्यादा लोग उठा रहे हैं।
कार्यक्रम काफी सरल है। शुरुआत यहाँ से की जाती है। यहाँ आप गूगल को अपने संगठन के बारे मे बताते हैं फिर गूगल आपसे यह पूछता है कि क्या आपके पास आपकी पंजीकृत डोमेन है या नहीं। हाँ या ना के आधार पर यहाँ से रास्ते थोड़े अलग हो जाते है। यदि पंजीकृत डोमेन है तो गूगल आपको कुछ निर्देश जारी करता है जो आपके डोमेन रजिस्ट्रार के लिए होते है। इन निर्देशों का पालन होने मे तकरीबन दो दिन का समय लगता है। इनका पालन होने पर गूगल देव को ज्ञान हो जाता है कि आप वाकई उस डोमेन पर हक रखते हैं। फिर गूगल देव आपके लिए ये से दोनो सुविधाएँ, यानि इमेल और वेबसाईट कि सुविधा सक्रिय कर देते हैं।उसके बाद आप वेबसाईट को गूगल देव के द्वारा दिए औजारों कि मदद से काफी कम समय मे बना सकते है। कोई एच टी एम एल के ज्ञान की आवश्यकता नहीं पड़ती।
यदि आपके पास अपनी डोमेन नहीं है तो काम और भी आसान है। ना केवल गूगल देव आपको डोमेन खरीदने में मदद करते हैं, बल्कि आपके लिए पूरी सेटिंग भी कर डालते हैं, रजिस्ट्रार के पास जाके सेटिंग के निर्देश नहीं जारी करना होता है, वो गूगल देव संभाल लेते हैं। केवल आपको १० डालर डोमेन के देने होते है जो रजिस्ट्रार के एक साल का शुल्क होता है।
गूगल एप्स की सुविधा छोटे व्यापार के लिए बेहद आकर्षक है। पर यदि आप ये सोच रहें हैं कि क्यों ना अपने ब्लाग वाले डोमेन पर अपनी व्यक्तिगत ईमेल सेवा चलाना चाहते हों तो माफ कीजिए गूगल को ये मंजूर नहीं। मेरा हे विचार है कि भारत के संदर्भ में प्रस्ताव काफी लुभावना है। मामला काफी सरल है पर फिर भी यदि आपमे से कोई मित्र किसी विशेष सवाल का जवाब जानना चाहे या तकनीकि या आर्थिक पेंच समझना चाहे तो कृपया मुझे लिखें, मुझे आपकी मदद करके काफी खुशी मिलेगी।

सागर तट का ये सुहाना दृश्य

पिछले रविवार को जब हम सुबह सुबह चेन्नई के एलियट बीच पर गए, तो कुछ मछुवारे अपनी नावें लेकर काम पर निकल रहे थे। सुर्योदय के कुछ बाद का दृश्य था, अच्छा लगा, तो हमने अपने कैमरे को तान दिया और कुछ तसवीरें उतारी ।बाद में देखा तो चित्र अच्छे लगे तो सोचा क्यों ना आपके साथ बाँट लूँ।



मंगलवार, मार्च 27, 2007

क्यों ना एक भारत पाक श्रृखंला हो जाए

अब विश्व कप तो भारत और पाक के लिए समाप्त हो गया है, पर इससे एक मौका उभर के आया है। तो प्रस्तुत है ये विचार। विश्व कप को मारो गोली और भई समानांतर में एक दस एक दिवसीय मैचों की एक भारत पाक श्रृखंला करवा डालो।पाँच मैच भारत में और पाँच पाकिस्तान में खेले जाएँगे। इसे एक प्रतियोगिता का दर्जा दिया जाए और जीतने वाले को विजेता और हारने वाले को उप-विजेता घोषित किया जाएगा।तो अब ध्यान दीजिए कि इसके क्या फायदे होंगे।
१॰ खेल प्रेमी फिर से अपने झंडे लेकर जुलूस निकाल सकेंगे। आखिर भारत पाक की टक्कर से ज्यादा रोमांच भला कहाँ होता है। आखिर झंडे खरीदने में भी पैसे लगते हैं भाई।
२॰ विज्ञापन दाता खुश- चलो कुछ करोड़ लोग फिर से टी वी से चिपक के बैठेंगे।
३॰ आई सी सी विश्व कप के टी आर पी की ऐसी तैसी हो जाएगी। शायद वो इसी बहाने हमारे क्रिकेट बोर्ड से सौदा भी कर ले- पर बाजी तो हमारे बोर्डों के हाथ में रहेगी , तो उनका भी फायदा।
४॰धोनी और द्रविड़ आदि को फिर से कुछ विज्ञापन करने को मिल जाएँ, उनका भी फायदा।
५॰ एक विजेता और एक उप विजेता तो इससे निकलेगा ही - तो दोनों देश के खेल प्रेमियों की अहंतुष्टि।

विषेशः आंखो देखा हाल सुनाने के लिए केवल सिद्धु और मंदिरा को चुना जाएगा। वर्ना डर ये है कि ऐसे मौके के अभाव में कम बोलने के कारण दोनों को अपच कि शिकायत न हो जाए।

अब अगर आधिकारिक श्रिंखला ना हो सके को कोई बात नहीं।प्रदर्शन मैच ही करवा दीजिए। सारा पैसा किरण मोरे और ग्रेग चैपल को सहायतार्थ दे दीजिए, ताकि उन्हें बार-बार अलग-अलग रूप में प्रकट होके क्रिकेट के माध्यम से रोटी कमाने के लिए बहाने ना ढूढने पड़ें। सबका फायदा। आप समझ रहें हैं ना?

सोमवार, मार्च 26, 2007

यह कैसा विश्व कप मेरे भाई ?

लंबे इंतेज़ार के बाद तो अभी-अभी विश्वकप क्रिकेट की शुरुआत हुई थी. आमतौर पैर किसी भी प्रतियोगिता के शुरुआती चरण हल्के फुल्के होते हैं जो नामी गिरामी टीमें होती हैं उन्हे कोई ख़तरा नहीं महसूस किया जाता है ये तो बस खाना पूरी से चरण होते हैं. पैर इस बार नहीं. पाकिस्तान बाहर हो चुका है और कोच बाब वूल्मर नहीं रहे. भारतीय टीम के अभियान भी भारी ख़तरे मे है . भारतीय उपमहाद्वीप मे 'खेल प्रेमी' या तो ढेले फेंकने की तैयारी कर रहे हैं या तो हाय-हाय के नारे लगा रहे हैं क्या यही क्रिकेट है ?
आज के हिंदू अख़बार में हम धोनी के बनते हुए मकान तो तोड़े फोड़े जाने की तस्वीर देखके दंग रह गये. इंज़माम मे तो पराजय के बाद सन्यास लेने तक की बात कही है. जरा रुकिये, क्या यही खेल है? ये खिलाड़ी भी हमारी ही तरह इंसान हैं कोई देशद्रोही नहीं. मैं यह नहीं कहता ही हार की आलोचना नहीं होनी चाहिए. ज़रूर होनी चाहिए. मगर पत्थर फेंकना और आग जलना कहाँ तक खेल की भावना के अनुरूप है मेरे भाई?

ये वही राँची है जो 1983 की विश्व कप विजय पर सारी रात झूमी थी. मैं तो वहीं था उस समय और मुझे वो दृश्य आज भी याद हैं जिन लोगों के पास दीवाली के बचे पटाखे थे उन्होने उस रात दूसरी दीवाली मनाई थी. और वहीं पैर यह दृश्य!
आगे अभी इस विश्व कप में केवल एक विजेता होगा. यदि यह मान भी लिया जाय की बिजेता इसी उपमहाद्वीप का होगा तो भी तीन टीमें नहीं जीतेंगी. यानी की यही पत्थराव और हाय हाय आगे भी. शर्म!
बहरहाल मनाया ये जाए की आगे अच्छा क्रिकेट देखने को मिले और सर्वश्रेष्ठ टीम जीते. और कोच वूल्मर की आत्मा को शांति मिले.

गुरुवार, मार्च 08, 2007

ब्लागर आया हिन्दी में

आगरा वाले अमित भाई खबर लाए हैं कि गूगलदेव ने ब्लागर में हिन्दी लिखने का transliteration का औजार लगा दिया है। मैने आजमाने की कोशिश तो नहीं की अभी तक, पर आप आजमाएँ और रिपोर्ट अपने चिट्ठे पर डाले, मैं जरुर पढ़ने आउँगा!

गुरुवार, फ़रवरी 22, 2007

तो ये लीजिए, विश्व कप क्रिकेट की समयसारणी

वैसे सुना तो ये है की भारतीय क्रिकेट बोर्ड दुनिया का सबसे धनी क्रिकेट बोर्ड है, पर जब हमने विश्व कप क्रिकेट की समयसारणी तो तलाशने की कोशिश की, तो मालूम चला आज तक उन्होने अपना जालस्थल बनाने की जहमत आज तक नहीं उठाई। कम से कम गूगल देव तो तो नहीं मालूम।

दुनियाँ के सबसे ज्यादा क्रिकेट प्रेमी तो भारत में रहते हैं मगर कोई ऐसा आधिकारिक जालस्थल नहीं है जो कि आपको विश्व कप क्रिकेट की समयसारणी को भारतीय मानक समयानुसार प्रस्तुत करता हो। तो लीजिए पेश है मेरा छोटा सा तोहफा, यानि ये कैलेंडर।



माफ कीजिए जब मैने कल ये कैलेंडर अपने और कुछ गैर हिन्दी भाषी दोस्तों के लिए बनाया था इसलिए ये अंग्रेजी मे हैं। बाद में सबसे बाँटने का ख्याल आया तो यहाँ डाल रहा हूँ।
यदि आप महीने को मार्च बना दें तो तारीखवार तरीके से आप मैच सारणी देख सकते है। यदि आप अजेंडा को क्लिक करें तो मैचवार समय सारणी आ जाएगी। यदि आप नीचे वाले बटन को क्लिक करें तो ये आपके गूगल खाते से जुड़ भी जाएगा।


यदि इसमें कोई त्रुटि दिखे तो कृपया टिप्पणी लिख डालें। तो मजे लीजिए विश्च कप के और प्रार्थना करें की भारत की विजय हो।