शनिवार, अगस्त 12, 2006
फ्रीकोनोमिक्सः एक चर्चा
मैने चौथी बार भी फ्रीकोनोमिक्स पढ़ ही डाला़। जैसा मैने पिछली प्रविष्टि में कहा है, यह एक बहुचर्चित किताब है।इसके लेखक लेविट एक प्रसिद्ध अर्थशास्त्री है, तथा डुबनर एक पत्रकार हैं। दोनो ही अमरीका के हैं। इसके शीर्षक से यह आभास होता है जैसे कोई अर्थशास्त्र की किताब है। दरअसल इसमे कुछ ऐसी घटनाओं का विष्लेशण है जो की समाज में रोज होती हैं, किन्तु उनके आर्थिक पहलु को आमतौर से परखा नहीं जाता। इस पुस्तक में विष्लेशण के लिए, गणित / सांख्यिकी की तकनीकों का खासा इस्तेमाल किया गया है। शायद इसी लिए कई लोगों का यह कहना है कि यह अर्थशास्त्र है ही नहीं, पर मैं इस विचार से सहमत नहीं मानता। लेखकों ने अर्थशास्त्र के सूक्ष्म पहलुऔं (माईक्रो-इकोनोमिक्स) का अध्ययन करने की कोशिश की है। उदाहरण के लिए, यदि आप यह जानना चाहते हैं कि १९९० के दशक में अमरीका में हो रहे अपराध और दो दशक पहले लड़े गए एक मुकदमे के बीच क्या रिश्ता है, अथवा अमरीकी समाज के विभिन्न समाजिक / आर्थिक वर्गों में नामों के प्रचलन का क्या सांचा है।
पुस्तक काफी रोचक है और कब आप अंत तक पहुँच जाते है यह अहसास भी नहीं होता। यही शायद इस पुस्तक की सबसे बड़ी त्रुटि है। एक बार किसी ने लेविट से उनके एकीकरणीय प्रसंग के बारे पूछा था। शायद इस पुस्तक को भी यही कमी है। दुसरी कमी अर्थशास्त्र को लेकर ही है। कहते है कि अर्थशास्त्री भूतकाल की भविष्यवाणी करते है, भविष्य की नहीं।इस पुस्तक को पढ़के के बाद भी आप शायद यही महसूस करेंगे। क्या मैं पाँचवी बार इसे पढ़ने का विचार रखता हूँ? शायद फिलहाल नहीं!
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3 टिप्पणियां:
अब तो लगता है कि पढ़ने पड़ेगी उसके बाद चर्चा में मजा आयेगा
अगर मैं इतनी गुस्ताखी कर सकूँ तो मेरा अनुमान है कि आपने मेरी टिप्पणी की तरफ इशारा किया था जब आपने कहा कि कुछ लोग इसे अर्थशास्त्र नही मानते। मुझे अभी भी अपना मत ठीक लगता है, हाँ शायद बहुत ही विस्तारित रूप मे कहा जाये तो शायद ये अर्थशास्त्र है - पर incentive अर्थशास्त्र की मूल कुंजी है और पूरी पुस्तक में इस विचार का कहीं वर्णन ही नही। सांख्यिकी की बात सही कही।
पुस्तक मुझे भी रोचक लगी लेकिन बहुत नही। लेखक ने कई दावे बिना सबूत के करे हैं। आपके उदाहरण - अपराध की दर और गर्भ गिराने के मुकदमे - को ही लीजीये। लेखक ने बहुत ही बुद्धिमानी दिखाते हुये बार-बार ये कहा कि अपराध इस वजह से हुये कि अवांछनीय जन्म हुये बीस साल पहले। लेखक ने अन्य विकल्पों को बताया तो सही पर बिना सबूत खारिज कर दिया। मैं क्यों मान लू कि उसका विवरण ही ज्यादा सही है?
माफ कीजिए आशीष भाई, मेरा ऐसा इरादा नहीं था। मेरे कई मित्रों का भी ऐसा ही विचार हैं।
ऐसे सभी विचारों का सम्मान करते हुए हम किताब के शीर्षक के अनुवाद में थोड़ा परिवर्तन करने का प्रस्ताव करते है। क्यों ना इसको अनूठा शास्त्र कहा जाए ना कि अनूठा अर्थशास्त्र?
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