रविवार, सितंबर 10, 2006
चेन्नई चिट्ठाकार असम्मेलन, पहला दिन
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असम्मेलन से प्रेरित होकर मेरा पहला पौडप्रसारण
अतुल चिटनीस सवेरे के सत्र में बोलते हुए।
उत्साह भरे माहौल में होती चर्चाएँ।
कृपा शंकर पौडप्रसारण के बारे मे बात करते हुए
मोब्लागिंग ने भी ध्यान खींचा
पेशेवर चिट्ठीकारी पर अमित अग्रवाल बोलते हुए
लोगों ने अमित अग्रवाल को बहुत ध्यान से सुना
श्रीमती गीता पद्मनाभन ब्लागर तो नहीं मगर उनका अतुल्य जोश देखने लायक था।
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असम्मेलन से प्रेरित होकर मेरा पहला पौडप्रसारण
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4 टिप्पणियां:
Its so diificult to read hindi now after all these years,starts to strain the eyes,can't imagine how much effort it must have taken for you to really write!!
खूब, आज के दिन की रिपोर्ट की प्रतीक्षा रहेगी!! :)
सारा जी, कभी प्रयास करके तो देखिए। उतना मुश्किल नहीं है जितना प्रतीत होता है।अंग्रेजी हो या हिन्दी, सब भावनाऔं की अभिव्यक्ति ही तो है।सच ये है कि मैने भी दसवीं के बाद हिन्दी अभी हाल फिलहाल मे ही लिखना शुरु किया है।
-राजेश
सुबह के शुरुआती सत्र मे श्रीमती गीता पद्मनाभन, फ्रीलाँस जर्नलिस्ट ने भाषाई चिट्ठीकारी पर प्रश्न पूछा था। मैने उसका संक्षिप्त परिचय दिया। कई सारे प्रश्न भी आए जैसे हिन्दी कैसे लिखते हैं, मेरे क्या अनुभव है,क्या ब्लागर जैसे टूल वगैरह मददगार है, हिन्दी में कितने चिट्ठे है, हिन्दी चिटठो को कैसे ढूढते है, आदि। चूंकि यह शुरुआती सत्र था और उत्सुकता ज्यादा थी, सुझाव आया की क्यों ना इसपर एक अलग सत्र ही लिया जाए। पर पहला दिन काफी सारे सत्रों से ठसा-ठस था, उस दिन इसका आयोजन नहीं हो सका। इसी दौरान मेरे द्वारा पंकज नरुला और देबाशीष भाई दोनो को फोन पर शामिल होने का आग्रह भी किया गया और दोनो पुरे उत्साह से तैयार भी दिखे।
दूसरे दिन दूसरे अर्ध में चर्चा की संभावना अधिक थी पर मुझे कहीं जाना था..............
मगर छोटे में कहूँ तो कई लोगो ने मूझसे आ के अलग से पूछा और मैने उनकी जिज्ञासा को देखते हुए बताया भी। मुझे जौर्ज जकारायस (याहू भारत के प्रमुख) से कुछ मिनट मिले और मैने उन्हे हिन्दी टंकित करके भी दिखाया।
छोटे में इतना ही .....
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