१९९८ में मैं और मेरा दोस्त विनीत ऊर्फ भय्यु बक्सा सामान सहित दिल्ली से अपने घर जबलपुर आने वाले थे। हमारी पढाई खत्म हो चुकी थी और हम बड़े उत्साह में थे।दोस्तों से बिछड़ने का दुख भी था।हमें निजामुद्धीन से गाड़ी पकड़नी थी और जैसा कि होता है, हमारे कुछ दोस्त हमे छोड़ने स्टेशन तक आए थे। कहते थे, भेज के ही दम लेंगे।
थोड़ी भीड़ अधिक थी। फिर भी हम अपनी सीट पर पहुँच गए। शाम का समय था। गोंडवाना एक्सप्रेस मात्र दस पाँच मिनट देर से चल पड़ी।
थोडी देर में एक परिवार के लोगों ने हमसे बर्थ बदलने का आग्रह किया।थोड़ा ज्यादा बड़ा दिखने वाला एक खुशकुमा परिवार था। जब हमे पता चला कि उनकी दो बर्थ दूसरे डब्बे में है, तो हमने मना कर दिया। फिर वो हमारे इर्द गिर्द अपनी बर्थों पर बैठ गए। दो बच्चे भी थे। थोड़ी चिल पौं ज्यादा थी। हम थोड़ा परेशान थे। थोड़ी देर में सूर्यास्त हो गया। उन्होंने हमसे फिर आग्रह किया।वो अपना टिकट भी दिखाने लगे। हमनें नकली बड़प्पन दिखाने का नाटक करते हुए टिकट ना देखने की बात कही। फिर भी ही ही करते करते कोने से टिकट पर ट्रेन का नंबर, तारीख और बर्थ नंबर देख ही लिया। हमने सोचा कि शांति मिलेगी, सो बात मान लो।बस निकल लो यहाँ से।
स्थान बदल लिया गया। उनमे से एक सज्जन हमारे साथ नए स्थान तक आए। बड़े भले आदमी दिखे। हम भी ठहरे जबलपुरी, सो एक बक्सा उनसे भी ढुलवा लिया। किसी कारणवश डब्बों के अन्दर से जाने वाला रास्ता बन्द था, सो एक स्टेशन पर ट्रेन के रुकने पर पूरी प्रक्रिया कर ली गई। टी टी वहीं खड़ा था, सो उस भले सज्जन ने उन्हे सूचित भी कर दिया। हवा अच्छी थी, हमने खाना खाया और फिर लंबे हो लिए।पता ही नहीं चला कि कब नींद आ गई।
देर रात कुछ आवाज सुनाई पड़ी। हमने आदत के मुताबिक सबसे पहले ये निश्चित किया कि सारा सामान सुरक्षित है।
दो सज्जन मेरे दोस्त विनीत को बर्थ खाली करने को कह रहे थे। मैं चौड़ा हो गया। पूछा, टिकट है आपके पास। उन्होंने टिकट आगे कर दिया। हमने बत्ती जलाके पूरे टिकट को पढ़ा। कोई त्रुटि नहीं मिली। हमने फिर भी कहा, अभी टी टी से पूछ लेते हैं। टी टी साहब ने उनके टिकट को सही करार दिया। टी टी भी दूसरे दिखे। शायद पिछले टी टी की ड्यूटी खत्म हो चुकी थी और ये नए सज्जन थे। हमने उन्हे माजरा समझाया। फिर बता चला, कि जिन लोगों से हमने बर्थ बदली थी, उनका आरक्षण तो कुछ स्टेशन पहले तक ही था। यानि उन्होंने वहीं तक का टिकट लिया था।
खीस निपोरते हुए हमने दावेदारी वाले नए यात्रियों को दोनो बर्थ थमा दी। उन्होंने हमे बैठने का स्थान भी दिया, पर हम पसर लिए, हम कोई बिना रिजर्वेशन वाले नहीं, हम अपने पुराने बर्थ पर जाके सोने का कार्यक्रम जारी रखेंगे।
हम गेट पर गाड़ी के रुकने का इंतजार करने लगे। काली रात, ठंडी हवा और आधी नींद मे मिला इंसल्ट! फिर एक छोटे से स्टेशन पर गाड़ी रुकी और हम अपने सामान को घसीटते हुए अपने बर्थ वाले डब्बे की तरफ अतितीव्र गति से बढ़ लिए। पहुँच भी गए और गाड़ी के खिसकते खिसकते सामान सहित चढ भी गए।
पर ये क्या! यहाँ तो कोई और लोग सो रहे थे। सो हमने भी उसी ताव से उन्हे उठाया। गलती मानने की बजाय, ये लोग तो हमसे भिड़ लिए। हम ही से ये कहने लगे कि टिकट दिखाइये। हमने कहा आप दिखाइये।बहस होने लगी। तब तक टी टी साब भी आ गए। आते ही हमने पूरी कहानी सुनाई, सोचा समाधान सामने है, बस अभी सोने के लिए बर्थ मिल जाएगी। टी टी साब हम्ही पर पिल पड़े, नो शो था सो हमने पिछले स्टेशन से अलाट कर दिया। ये अब आपकी बर्थ नहीं रही। जिससे शिकायत करनी हो कललो।
अब क्या किया जाता। अगले चंद घंटे हमने अपने बक्से पर बेसिन के पास बैठकर काटे। फिर जबलपुर आया तो मैने और विनीत ने ये किसी को ना बतानी की ठानी। सबको यही बोला यात्रा मजे मे थी, रिजर्वेशन जो करवा रखा था!
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7 टिप्पणियां:
फ़िर भी ठीक ही थी भाई आपकी यात्रा तो हम लिखेंगे अपनी एक यात्रा पर, आपने उसकी याद दिला दी!!
शु्क्रिया!!
च च, बहुत बुरा हुआ राजेश भाई। खैर आगे से ध्यान रखिएगा।
अरे, लिजिये आप भी हमारे शहर जबलपुर के ही निकले. अब ठरिये, मैं तो सबको बताऊँगा जबलपुर में. :) अभी जाने वाला हूँ दिसम्बर में.
मजेदार यात्रा रही. अब तो कोई मुझसे सीट बदलने को कितना भी रिक्यूएस्ट करे, यही लेख दिखा दूँगा. फोटो कॉपी करा कर रख लिया है.
मजेदार संस्मरण अब लग रहा है। उस समय तो झेलाई हो गयी होगी। :)
jI accha hai
लब्बो मिजाज यह रहा कि कभी बर्थ न बदलो :-)
Good 1! some train journeys are memorable!
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