कहते हैं कि यह मोटरसाईकल सन् १९८५ से खड़ी है। प्रतीत होता है कि अब एक पेड़ के साथ इसका पूरे जन्म का रिश्ता हो गया है।
नोटः अगर आप पूछें कि कहाँ, तो ये मुझे भी नहीं मालूम। अगर आपको पतो हो तो मुझे भी बताएँ!
गुरुवार, नवंबर 09, 2006
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7 टिप्पणियां:
अगर जोश में आ कर यह फटफटिया किसी दिन चल पड़ी तो पेड़ की तो मुफ़्त में ही सैर हो जाएगी। ;)
ओ भैया...!!
ये कौन सी कम्पनी की फ़टफ़टिया है जरा पता तो कर दो..!! इत्ते सालों से खड़ी है और...रंग तो छोडो, टायर तक टनटनाट (लगता है रेग्युलर्ली हवा वगैरह चेक होती रही है) और सीट कवर? वो भी जस का तस?
कहीं एडोब की फ़ोटोशाप कम्पनी की गड्डी तो नहीं है?? ;)
बड़ा टिकाऊ वाहन बनाया है, उत्पादक कम्पनी ने.
बहुत याराना लगता है भाई
अनुराग जी - सही बोलते हैं आप!
विजय भाई - शायद टंकी भी लबालब हो!
संजय भाई - ये फेवीकोल का जोड़ है, टूटेगा नहीं!
भुवनेश भाई - सचमुच
नम्स्ते.. आजकल कमप्युटर मॆं इतनी सुविधाये उपलब्ध है, जिस्से दो अलग तस्वीरों को जोडा जा सकता है.यह भी ऐसी कोइ दिमाघ का ही उपज होगा.. हकीकत या फसाना.. तस्वीर देखकर एवं टिप्पणियां पठ्कर बहुत अच्चा लगा..रोज के भागम-भाग में भी मुस्कुराने का कारण मिला...(दोनों आजीवन साथ रेहने का वादा भरपूर निभा रहे हैं)..धन्यवाद
दीपा
a lo, thanx yaaar, kitney saalon sey doond raha hoon, ab jaa kar mili........
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