शनिवार, मई 05, 2007

चंद्रयान क्या वाकई चाँद पर जाएगा?

मेरे साथी चिटठाकार पंकज बेंगाणी ने हमेशा की तरह एक संदर्भ वाले विषय पर अच्छा आलेख प्रस्तुत किया है।मैं कोई खराब स्वाद नहीं पैदा करना चाहता पर फिर भी मुझे इसमें उत्साहित होने लायक कोई बात नहीं दिखती।कल के लाँच से ३२८ कि ग्रा का सेटेलाइट तकरीबन ३०० कि म की कक्षा में दागा गया। संचार और टी वी के लिए दो-तीन टन वजनी सेटेलाइट ३६००० कि मी की कक्षा में स्थापित करना होता है। असली पैसा तो इसी प्रकार के प्रक्षेपण में है। हम इस से अभी दशकों दूर हैं। इसी कारण से हमारे संचार उपग्रह अभी भी किराए की सवारी करते हैं। उधर चीन वाले दनादन राकेट दागते चले जा रहे हैं।उधर चंद्रयान की बात हो रही है। अपोलो-११ मिशन को १९६९ में चाँद पर जाने में चार दिन लगे थे। हमारे राकेट तो अभी दो चार घंटे की उड़ान भी नहीं भर पाते। तो २००८ में किस चंद्रयान के प्रक्षेपण की बात हो रही है। मेरा कहने का इरादा केवल ये है कि अभी इस क्षेत्र में अभी काफी रास्ता तय किया जाना बाकी है, बेहिसाब अपनी पीठ ठोकने की शायद अभी जरुरत नहीं।
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7 टिप्‍पणियां:

पंकज बेंगाणी ने कहा…

आपकी चिंता वाजिब है, पर हमें यह समझना चाहिए कि हमारा अंतरिक्ष कार्यक्रम अमरीका से और अन्य देशों से काफि बाद में शुरू हुआ है. और फिर सरकारी अडचनो, पैसो की भारी किल्लत और योग्य तथा गुणी वैज्ञानिकों द्वारा नासा चले जाने के बावजुद हम यहाँ तक तो पहुँच पाए हैं कि चान्द की धुरी तक उपग्रह भेज सकते हैं.

चन्द्रयान मिशन कपोल कल्पना नही हैं, और कुछ दिन पहले मैने एक प्रतिष्ठित समाचार पत्र में पढा था कि चीन 2020 तक चाँद पर मानव भेजने की तैयार कर रहा है, और भारत उससे पहले भेज सकता है. यह भी उपलब्धि होगी.

देखिए हमारा देश राम भरोसे चलता है, इसमें अगर थोडा बहुत खुशी और सम्मान का मौका मिलता है तो लेना चाहिए. बाकि मर्जी आपकी. :)

पंकज बेंगाणी ने कहा…

आपकी जानकारी के लिए:

अहमदाबाद इसरो केन्द्र में चन्द्रयान के कलपुर्जों का निर्माण जारी है. चन्द्रयार फरवरी 2008 तक चाँद पर जाएगा. हालाँकि यह चन्द्रमा की ओर्बिट तक जाएगा और कई अध्ययन करेगा. अधिक जानकारी यहाँ है.

http://en.wikipedia.org/wiki/Chandrayaan

दुसरा: चीन का मानव मीशन 2020 नही परन्तु 2030 तक होने की सम्भावना है. भारत उससे पहले भेज सकता है.

http://en.wikipedia.org/wiki/Future_lunar_missions

हालाँकि इसकी अधिकृति पुष्टि नही हुई है

बेनामी ने कहा…

अपोलो-११ मिशन को १९६९ में चाँद पर जाने में चार दिन लगे थे। हमारे राकेट तो अभी दो चार घंटे की उड़ान भी नहीं भर पाते।
किसी भी राकेट का इंजन सिर्फ गुरुत्वाकर्षण से बाहर आने के लिये तथा उसकी दिशा परिवर्तित करने के लिये ही प्रयुक्त होता है। चार दिनो की अपोलो ११ की चन्द्रमा यात्रा मे सभी राकेटो का प्रज्वलन समय ३ घण्टो से ज्यादा का नही था।
अपोलो ११ के राकेट हमारे अपने राकेट GSLV से ज्यादा शक्तिशाली नही थे, उनमे एक और अतिरिक्त चरण का राकेट लगा था जो चन्द्रमा से लिफ्ट-आफ के लिये चन्द्रयान इगल द्वारा प्रयुक्त हुआ था। हमारे कोई भी राकेट जैसे हमारा GSLV या PSLV मे और चन्द्रयान के राकेट मे ज्यादा अंतर नही होता है।
यह प्रक्षेपण PSLV का है जो कि हल्के सेटेलाइट के लिये ही है, भारी सेटेलाइट के लिये नही। इन सेटेलाइट को ध्रुविय कक्षा मे रहना होता है। भारी सेटेलाइट के लिये GSLV बनाया गया है। PSLV एक शुरुवात है आप देखते जाइय़े कुछ ही दिनो मे GSLV भी अपनी व्यव्शायिक उड़ान भरेगा।

संजय बेंगाणी ने कहा…

वैसे तो आशिष जी ने बता दिया है, आंतरिक्ष में कोई अवरोध न होने की वजह से गतिशील पदार्थ गति में रहता है, इस प्रकार पृथ्वी से निकलने के बाद रोकेट अपने आप आगे बढ़ेगा, सही मार्गदर्शन जटील है, अतः मंगल तक जाने में समय लगेगा.
हम अमेरीका से पीछे इसलिए है क्योंकि हमारे यहाँ ऐसे मीशन का महत्व समझने वाले कम है, इसे फिजुलखर्ची समझा जाता है, जैसे की परमाणू विस्फोट के बारे में कहा जाता है.

अनुनाद सिंह ने कहा…

अपने को इतना भी कमजोर आंकना ठीक नही है। जो करता है, वही समस्यायों से दो-चार होता है और वही सफल भी।

Udan Tashtari ने कहा…

चलो, यह अच्छा रहा कि आप लोगों की बातचीत से काफी जानकारी मिल गई मित्रों के बीच वार्तालाप के लिये. :)

Rajesh Kumar ने कहा…

@ पंकज जीः जानकारी के लिए धन्यवाद। हम भी चाहेंगे की भारतीय तिरंगा अंतिरिक्ष की गहराईयों तक जावे। विकी लिंक के लिए धन्यवाद।
@ आशीष जीः टिप्पणी के लिए धन्यवाद।भावनाएँ अच्छी है।
@ संजय जीः आप सही फरमाते हैं, ये फिजुलखर्ची तो कम से कम नहीं है।
@ अनुनाद जीः कमी कतई नहीं आंकी जा रही है। केवल प्रोजेक्ट मैनेजमेन्ट की बात है। टिप्पणी के लिए धन्यवाद।
@ समीर जीः आप पधारते रहें , हमे अच्छा लगता है।