सोमवार, मार्च 26, 2007

यह कैसा विश्व कप मेरे भाई ?

लंबे इंतेज़ार के बाद तो अभी-अभी विश्वकप क्रिकेट की शुरुआत हुई थी. आमतौर पैर किसी भी प्रतियोगिता के शुरुआती चरण हल्के फुल्के होते हैं जो नामी गिरामी टीमें होती हैं उन्हे कोई ख़तरा नहीं महसूस किया जाता है ये तो बस खाना पूरी से चरण होते हैं. पैर इस बार नहीं. पाकिस्तान बाहर हो चुका है और कोच बाब वूल्मर नहीं रहे. भारतीय टीम के अभियान भी भारी ख़तरे मे है . भारतीय उपमहाद्वीप मे 'खेल प्रेमी' या तो ढेले फेंकने की तैयारी कर रहे हैं या तो हाय-हाय के नारे लगा रहे हैं क्या यही क्रिकेट है ?
आज के हिंदू अख़बार में हम धोनी के बनते हुए मकान तो तोड़े फोड़े जाने की तस्वीर देखके दंग रह गये. इंज़माम मे तो पराजय के बाद सन्यास लेने तक की बात कही है. जरा रुकिये, क्या यही खेल है? ये खिलाड़ी भी हमारी ही तरह इंसान हैं कोई देशद्रोही नहीं. मैं यह नहीं कहता ही हार की आलोचना नहीं होनी चाहिए. ज़रूर होनी चाहिए. मगर पत्थर फेंकना और आग जलना कहाँ तक खेल की भावना के अनुरूप है मेरे भाई?

ये वही राँची है जो 1983 की विश्व कप विजय पर सारी रात झूमी थी. मैं तो वहीं था उस समय और मुझे वो दृश्य आज भी याद हैं जिन लोगों के पास दीवाली के बचे पटाखे थे उन्होने उस रात दूसरी दीवाली मनाई थी. और वहीं पैर यह दृश्य!
आगे अभी इस विश्व कप में केवल एक विजेता होगा. यदि यह मान भी लिया जाय की बिजेता इसी उपमहाद्वीप का होगा तो भी तीन टीमें नहीं जीतेंगी. यानी की यही पत्थराव और हाय हाय आगे भी. शर्म!
बहरहाल मनाया ये जाए की आगे अच्छा क्रिकेट देखने को मिले और सर्वश्रेष्ठ टीम जीते. और कोच वूल्मर की आत्मा को शांति मिले.
Test

2 टिप्‍पणियां:

उन्मुक्त ने कहा…

राजेश जी मैं आपका चिट्ठा लिनेक्स में फयर फॉक्स में देखता हूं पर यह फैल कर दहिने तरफ के कॉलम में चला जाता है। जिसके कारण पढ़ने में अवसुविधा होती है। इसका कोई निदान है क्या।

Rajesh Kumar ने कहा…

उममुक्त जी, त्रुटि इंगित करने के लिए धन्यवाद। मैं जल्दी ही टेम्पलेट बदलने जा रहा हूँ, उसके पश्चात आपसे पुनः पूछुंगा।