बुधवार, दिसंबर 27, 2006

आज के लिए एक कार्टून पेश है......


अब जर्मनी के ओलिवर विडर के भविष्य के बारे मे इस मजेदार कार्टून को देखिए। क्या हालत होगी ऐसी दुनियाँ की!

बुधवार, दिसंबर 20, 2006

ब्लागर बीटा से बाहर

आखिर गूगल ने ऐलान कर दिया की ब्लागर प्लेटफार्म बीटा से बाहर आ गया है। वैसे इस बारे में अटकलें भी 'अब-तब' की थी। पिछले कुछ दीनों मे गूगल काफी तेजी से चिट्ठों को बीटा पर ठेल रहा था। इसमे कूछ नए फीचर हैं जो पुराने ब्लागर पर नहीं था। सरलता में गूगल के विश्वास के अनुसार ही नए प्लेटफार्म को 'नया ब्लागर' कहा गया।
मुझे ये तो नहीं मालूम की दूसरों का अनुभव कैसा रहा पर ककुछ 'बून्दें, कुछ बिन्दु' को माईग्रेट करने में भाषा की सेटिंग अंग्रेजी हो गई तथा समय की सेटिंग गड़बड़ा गई थी। पर कुछ फीचर अच्छे हैं जैसे लेबल। यदि आपने माईग्रेट नहीं किया है तो मेरी सलाह मानते हुए अपने टेमप्लेट की कापी जरुर सुरक्षित रखें।

सोमवार, दिसंबर 18, 2006

गूगलानुसार भारतवासी अक्टूबर में क्या ढूंढ रहे थे

शायद बहुत कम लोग ये जानते हैं कि गूगल देव अपने भक्तों की खोजों का लेखा जोखा भी रखते है। इसके लिए एक अंतरस्थल भी है जिसे ज़िटगेय्स्ट (Zeitgeist) कहते हैं जहाँ पर गूगलदेव सबसे लोकप्रिय खोजों को प्रकाशित करते है। अब ये अलग अलग देश के लिए अलग अलग सूची प्रकाशित होती है। इनको देखने पर रोचक जानकारी मालूम होती है। मसलन साथ वाले चित्र में भारत की अक्टूबर की सबसे ज्यादा खोजे जाने वाले शब्द / शब्दसमूह हैं। साफ है कि भारतवासी अक्टूबर में सबसे ज्यादा यात्रा की तैयारी मे लगे थे। कुछ ध्यान आने वाली फिल्मों की तरफ भी था। सानिया मिर्जा और क्रिकेट तो भारतीय जीवन का हिस्सा जैसे है।ऐंजेलिना जोली की टोली भी उसी समय पुणे और मुंबई मे लोगों से पंगे लेती चल रही थी।
यदि आप पूरा ज़िटगेय्स्ट देखना चाहते हैं तो यहाँ जाँए। वैसे ज़िटगेय्स्ट शब्द जर्मन का है जिसका अर्थ है 'समय की भाव' या अंग्रेजी मे कहा था तो 'spirit of the times'।

शुक्रवार, दिसंबर 15, 2006

वाल-मार्ट भारत में, क्या बदलेगा? -२

अपने पिछले आलेख में मैने वाल-मार्ट के भारती के साथ समझौते के बाद भारत मे आने की बात की है। वास्तव में ये एक छोटा सा भ्रम है।वाल-मार्ट भारत मे स्टोर भले ही ना चला रहा हो, पर वे भारत से काफी कुछ खरीद कर अपने स्टोर में बेचते हैं इस तरह से वो भारत से जुड़े तो पहले से हैं। उनके ग्राहक क्या चाहते है इसपर वे काफी पैनी पकड़ निगाह रखते है। उनके खरीददार भारतीय उत्पाद पर भी निरंतर निगाह रखते हैं, और काफी कम कीमत पर काफी माल उठा लेते हैं। यही है सफल सप्लाई चेन का रहस्य।
हाँ, तो क्या पड़ोस से शर्मा जी की गल्ले की दुकानें बन्द हो जाएंगी और क्या बिल्लु वाल-मार्ट से पेंसिल, कापी खरीदेगा? क्या बिल्लु की माँ वाल-मार्ट से आटा चावल खरीदने जाएगी? लगता तो नहीं, कम से कम तुरंत तो नही और कमसकम पूरे भारत में तो नहीं। कारण कुछ ऐसे हैं।
-वाल-मार्ट के स्टोर जरा बड़े होते हैं। कहाँ है जगह हर मुहल्ले मे?
-शर्मा जी फोन करने पर एक किलो आटे का पैकेट भी लड़के के हाथ भिजवा देते है। बड़ी खराब आदत है जनाब़!
-शर्मा जी उधार पर भी माल सप्लाई कर देते है। वाल-मार्ट से उधार माल खरीदने के लिए क्रेडिट कार्ड की जरुरत पड़ेगी।
- इलेक्ट्रानिक्स - कितनी बार खरीदते है आप?
- कहीं पढ़ा कि भारत मे ७०० शहर हैं। कहाँ कहाँ जाएगी वाल-मार्ट?
- कितनी जल्दी एक तन्दुरुस्त सप्लाई चेन तैयार हो जाएगी।
- एक पैकेट चायपत्ती या नमक के लिए क्या वाल-मार्ट जाया जाएगा? हमारे सौदे जरा छोटे होते हैं जरा।

तो जनाब संभावना कुछ यूँ है। मैकडोनलड्स वालों को देखिए। बड़ी 'उफ-मैकडोनलड्स' थी मीडिया मे उनके आने को लेके। दस साल के बाद भी पाँच छे शहरों से ज्यादा नहीं बढ पाए। वे भारतीय खानपान की आदतों को कितना बदल पाए ये तो मालूम नहीं पर उनके मेनु-कार्ड मे अब भारतीय शब्द जरूर दिखते है।(अच्छा पित्ज़ा बनाते हैं मगऱ!). और अभी भी बहुत कम लोग ही जाते हैं। दूसरा, देसी मॉल भी खुब उभर रहे हैं कुकुरमुत्तों कि तरह, वे भी उसी ग्राहकी को खीचना चाहेंगे(जो गाड़ी मे आए और क्रेडिट कार्ड पार सामान खरीदें)।और तीसरी बात, शर्मा जी को कम मत आँकिए।
हाँ, सेकेंड्री इफेक्टस जरूर होंगे। जैसे भारतीय व्यापार में ग्राहकों को लुभाने के नए तरीके दिखलाई पड़ेंगे। धीरे धीरे वाल-मार्ट जैसी कम्पनियों के सप्लाई चेन, इनवेट्री वगैरह के चलाने के तरीके दूसरों द्वारा सीखे जाएंगे।
यानि ग्राहकों का फायदा। वाल-मार्ट भले सारे शहरों मे न दिखे, पर उसकी मौजुदगी महसूस जरुर की जाएगी। और हाँ, कुछ नौंकरियाँ भी लगेंगी। कुल मिला के मेरा तो यही कहना है, की 'आ जाओ ठाकुर'।

सोमवार, दिसंबर 11, 2006

वाल-मार्ट भारत में, क्या बदलेगा? - १

वाल-मार्ट दुनिया की दुसरी सबसे बड़ी कम्पनी है। इसका सालाना कारोबार ३१५ अरब अमरीकी डालर का है अमरीका मात्र मे ही इसमे १३ लाख लोग काम करते हैं। ये कम्पनी १९६२ में अमरीका के बिल क्लिंटन वाले आरकेनसा राज्य के एक छोटे कस्बे में एक बेजोड़ व्यापारी सैम वालटन ने १९६२ में स्थापित की गई थी। आज ये १४ देशों में ६६०० के करीब स्टोर चलाती है।वाल-मार्ट की सबसे खास बात है, कि इसके स्टोर में किराने का सामान से लेकर इलेक्ट्रानिक्स तक के एवरिडे लो प्राइसेज्।
वैसे तो वाल-मार्ट भारत से बहुत कुछ खरीद कर अपने स्टोरों में बेचती है पर अभी तक भारतीय ग्राहकों के लिए एक भी स्टोर नहीं चलाती है। पर अभी हाल ही में भारती व्यापारसमूह ने वाल-मार्ट से एक करार किया है। सरकारी नियमों के तहत कोई भी विदेशी कम्पनी फुटकर (रिटेल) व्यापार में ५० फीसदी से ज्यादा नहीं लगा सकती। भारती के साथ वाल-मार्ट का ५०-५० का सौदा है। तो क्या ऐसी कम्पनी के आते ही भारत में मैं और आप साबुन-तेल अब वाल-मार्ट से खरीदेंगे? एक अनुमान के अनुसार, भारत मे प्रति १००० व्यक्ति ५.५ दुकानें हैं। यानि १०० करोड़ के लिये आप खुद अंदाजा लगाएँ। तो क्या वाल-मार्ट के आते ही, इन दुकानदारों को शटर खीँचने होंगे? हाँ कहने से पहले जरा रुकिये।
पिछले कुछ वर्षों में भारत की अर्थव्यव्स्था ८ फीसदी से भी ज्यादा तेजी से बढ़ रही है। अभी हाल मे सरकारी अनुमान तो ये दर ९ % से भी ज्यादा होने की बात कर रहे हैं। बचत दर कम हो रही है, यानि हम और आप काफी पैसे खर्च कर रहे हैं। दिवाली के दिन केवल नोकिया ने ४ लाख से ज्यादा फोन बेचे। यही है रिलायंस, भारती आदि के फुटकर ( रिटेल) धंधे मे कूदने की वजह।

तो क्या वाल-मार्ट के भारतीय मार्केट मे आते ही क्या सबकुछ बदल जाएगा? अगली प्रविष्टि मे...............

मंगलवार, दिसंबर 05, 2006

फोर्ड का अनोखा नौकरी मेला

१९०३ में हेनरी फोर्ड द्वारा स्थापित फोर्ड मोटर कम्पनी दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी कार कम्पनी है। हाल के वर्षों में जापानी कार कम्पनियों की भारी मार के आगे फोर्ड जैसी अमरीकी धरोहर की हालत खस्ता हो चली है। हाल ही में फोर्ड मोटर ने अपनी सम्पदाओं को गिरवी रखकर १८ खरब डालर उधार लिये हैं ताकि कम्पनी चालु रहे। कुछ महीने पहले फोर्ड ने बोइंग मे काम कर रहे ऐलेन मुलाली को मुख्य कार्यकारी बनाया है और उन्हें जिम्मेदारी सौंपी है कि वो भारी घाटे को कम करें।
फोर्ड मे तीन लाख से भी अधिक लोग काम करते हैं। घाटे मे चल रही फोर्ड को उबारने की पहल के तहत इसमें काम करने वाले लोगों की संख्या को घटाने का लक्ष्य रखा गया है। कम्पनी ने अपने कर्मचारियों को नौकरी छोड़ने पर लुभावना आर्थिक पैकेज दिया है और साथ ही उनके लिये एक नौकरी
मेला का भी आयोजन भी किया।
इस मेले में दुसरे संगठन के लोग आमंत्रित थे जो यहाँ से फोर्ड के कर्मचारियों को अपनी कम्पनियों में भर्ती कर रहे थे। एक प्रेरक वक्ता भी थे जो कि फोर्ड के कर्मचारियों को फोर्ड छोड़ बाहर जाकर दूसरी जगह जा नया भविष्य तलाशने के लिए उत्साहित कर रहे थे। आने वाले फोर्ड कर्मचारियों को एक डी वी डी भी दी गई जहाँ आने वाले समय मे फोर्ड की संभावित अवस्था का चित्रण था और बाहर जा चुके लोगों को मिली सफलता का वर्णन था। जो संगठन यहाँ भर्ती के लिए मेले मे आए उनमें सी आई ए, एफ बी आई, अग्निशमन विभाग, रेलवे आदि थे। कुछ विश्वविद्यालय भी थे जहाँ लोग आगे पढ़ सकें। एक भूतपुर्व इलेकट्रेशियन भी थे जो कि अभी हारवर्ड में प्रबंध पढ़ रहे है, ताकि फोर्ड के कर्मचारियों को
भी प्रेरणा मिल सके।
ऐसे मेले फोर्ड के हर अमरीकी प्लाँट में लगाए गये।इन मेलों तथा कुछ अन्य पहलों से कुल ३८००० के लगभग लोगों ने फोर्ड से निर्गमन के लये बस्ता उठाया। गौर की बात ये है कि कर्मचारी कम किये जाने की बात से यहाँ का यूनियन ( यूनाईटेड आटो वर्कर्स) भी सहमत है।
क्या फोर्ड की इस पहल से छंटनी की तैयारी कर रहे दूसरे उद्योगों को कोई शिक्षा मिलनी चाहिये। या फिर सिर्फ इतना कहा जाए कि फोर्ड एक महान कम्पनी है हो संकट में भी अपनी महानता को बचाये हुए है?