मंगलवार, जनवरी 19, 2016

कैसी है पहेली, हाय

गत कुछ दिनों से मैं एक अजीब से पहेली सुलझाने की कोशिश कर रहा हूँ। पहेली ये है कि इस ब्लॉग पर कई लोग एक ऐसी वेबसाइट द्वारा भेजे जा रहे हैं, जिसका मेरे से कोई वास्ता ही नहीं। मैंने उस लिंक पर जा कर देखने का प्रयास किया पर कुछ जानकारी नहीं मिली। इस साइट का नाम सोशल ट्रेड (www.socialtrade.biz) प्रतीत होता है मगर ये साइट करती क्या है , ये स्पष्ट नहीं है। ना ही इस साइट पर किसी व्यक्ति का नाम मिला, हांलाकि उत्तर प्रदेश के गाज़ियाबाद का एक पता अवश्य है। मैं आम तौर पर ऐसी क़िसी भी साइट को शंका की निगाह से देखता हूँ, जिसपर किसी का नाम न हो। भला कोई यदि सही काम कर रहा हो तो भला नाम क्यों न देगा, ऐसी मेरी सोच है।
विशेष बात ये है की इस ब्लॉग पर अलग अलग स्थानो पर रहने वाले लोग इस सोशल ट्रेड के माध्यम से पहुंच रहे हैं। अतः मेरा सभी पाठको से निवेदन है की किसी लुभावने चक्कर में न पड़ें और सब कुछ जांच परख के ही करें। वर्ना इस इंटरनेट जगत में अनेक प्रकार के खिलाडी हैं, कहीं आप किसी गलत प्रलोभन में न आ रहे हो। सावधान।

रविवार, अक्तूबर 23, 2011

काफी समय बाद...


काफी समय बाद लिख रहा हूँ। वर्ष के इस खंड के आते ही समूचे भारत में मौसम में थोड़ा परिवर्तन दिख रहा है, और हवा की नमी में भारीपन आ चुका है। शायद यह दीपावली के आने का संकेत है।
आप सभी को दीपावली के पर्व की शुभकामनाएँ। आपकी दीपावली आनन्दमई होवे और हर दीप आपके जीवन में एक नया हर्षमय राग छेड़े।




गुरुवार, फ़रवरी 11, 2010

गूगल चुनौती :क्या हिंदी ब्लागरों में है दम?!

गूगल देव हिंदी भाषियों के लिए लाये हैं एक प्रतियोगिता.
यदि आपको लगता हैं की आपमें हैं दम , तो निश्चय ही अपनी प्रविष्टि डालें.

शशिधर जी, जानकारी के लिए धन्यवाद

शुक्रवार, फ़रवरी 05, 2010

डेढ साल के बाद पुनः हाजिर

आज ये किसी मन के कोने से ये इच्छा हुई कि क्यों न कुछ पोस्ट कर दिया जाय। मेरा कहना ये है कि का लिखा जाए।

गुरुवार, जुलाई 10, 2008

क्या इस चिट्ठे को दुबारा जीवित कर दिया जाए?

सोचता हूँ चिट्ठे का जीवन कितना उत्तम है- कभी भी जीवित कर लिया जाता है। पर शायद ये बात पूरी सही भी नहीं। अगर सही भी है तो कम-से-कम उचित तो नहीं है। आक्सीजन की जरुरत तो हर कुछ को होती है। चलिए आज से इस चिट्ठे को आक्सीजन की पूर्ति की जाय। मुलाकात को इतने दिन हुए कि चर्चा कहाँ से शुरू की जाए? इतने दिनों मे तो हमने मैसूर घूम आए, सिगरेट पीना छोड़ दिया (इसपर भी चर्चा किसी दिन जल्द ही), केरल भी घूम लिया, अपने अंग्रेजी चिट्ठे को ब्लागस्पाट से वर्डप्रेस पर खिसका दिया, और पता नहीं कितनो से दोस्ती और कितनों से लड़ाई हुई़!
तो संक्षेप में ये वादा रहा कि लिखता रहूँगा। आज के लिए मैसूर के महाराज का महल की तसवीर, रविवारी रोशनीं में।



( तसवीर हमारे फोन से खींची गई )