गुरुवार, जुलाई 10, 2008

क्या इस चिट्ठे को दुबारा जीवित कर दिया जाए?

सोचता हूँ चिट्ठे का जीवन कितना उत्तम है- कभी भी जीवित कर लिया जाता है। पर शायद ये बात पूरी सही भी नहीं। अगर सही भी है तो कम-से-कम उचित तो नहीं है। आक्सीजन की जरुरत तो हर कुछ को होती है। चलिए आज से इस चिट्ठे को आक्सीजन की पूर्ति की जाय। मुलाकात को इतने दिन हुए कि चर्चा कहाँ से शुरू की जाए? इतने दिनों मे तो हमने मैसूर घूम आए, सिगरेट पीना छोड़ दिया (इसपर भी चर्चा किसी दिन जल्द ही), केरल भी घूम लिया, अपने अंग्रेजी चिट्ठे को ब्लागस्पाट से वर्डप्रेस पर खिसका दिया, और पता नहीं कितनो से दोस्ती और कितनों से लड़ाई हुई़!
तो संक्षेप में ये वादा रहा कि लिखता रहूँगा। आज के लिए मैसूर के महाराज का महल की तसवीर, रविवारी रोशनीं में।



( तसवीर हमारे फोन से खींची गई )