बुधवार, मई 30, 2007

वर्डप्रेस वालों, जरा ध्यान से सुनो

ये पोस्ट उन लोगों के काफी काम की है जो कि वर्डप्रेस.काम पर अपना चिट्ठा चलाते हैं। पिछले समय में कुछ ऐसे परिवर्तन हुए हैं जिससे आप बिना होस्टिंग वगैरह के झमेले मे पड़े ना केवल अपने चिट्ठे को अपने डोमेन पर कुछ ही समय मे चलता हुआ देख सकते है, बल्कि इसी डोमेन पर गूगलदेव की मदद से ई-मेल सेवा भी चला सकते है। ये व्यक्तिगत ई-मेल सेवा बिलकुल जीमेल का अनुभव देगी यानि वही २ जी बी स्थान और वैसा ही काम करने का तरीका।तो कैसे होगा ये, जरा ध्यान से सुनिए।सबसे पहले तो आपको एक अदद डोमेन की आवश्यकता होगी। आप या तो इसे किसी रजिस्ट्रार से खरीद सकते है, या फिर सीधे वर्डप्रेस से खरीद सकते है।

हिसाब-किताबःवैसे यदि आप आपने डोमेन किसी रजिसट्रार से लेंगे तो हो सकता है कि इसमे ३०० - ४५० रुपए का खर्चा आता है। फिर आपके चिट्ठे को डोमेन से जोड़ने के लिए वर्डप्रेस वाले १० डालर, यानि तकरीबन ४०० रुपए लेंगे, यानि कुल मिला के ७००- ८०० का खर्चा बैठेगा। मगर यदि आप डोमेन भी वर्डप्रेस वालों की मदद से लेंगे तो कुल खर्चा १५ डालर, यानि ६०० रुपए। इसके बाद ये खर्चा हर साल आएगा। हाँ, गूगल देव आपकी डोमेन पर जी-मेल चलाने के लिए मुफ्त सेवा भी देते हैं ।

ब्लागर पर चिट्ठाकारी करने वाले, निराश न हो। आप जैसा की जानते हैं कि आज भी ब्लागर की मदद से अपना चिट्ठा अपने डोमेन पर चलाया जा सकता है ( जैसे की मेरा अंग्रेजी चिट्ठा - वर्डप्रेस के विपरीत गूगलदेव पैसे भी नहीं मांगते), पर जीमेल सुविधा नहीं। पर मेरा पूरा विश्वास है ये ज्यादा दूर नहीं , कुछ दिनों कि बात है। तो बढिए आगे और अपने अनुभव चिट्ठाकारों से बाँटिए। हिन्दी चिट्ठाकारी मे मस्ती का आलम बढते चला जाय, बस।

शुक्रवार, मई 25, 2007

गूगलंदाज़ी - २: ये चार सूत्र याद रखिये

कल शुरु गई चर्चा को जारी रखते हुए हम आज पेजरैंक से आगे कुछ और कदम चलेंगे। हम सभी ये जानने को उत्सुक रहते हैं कि सामने वाला हमारे बारे में क्या राय रखता है। यदि वो सामने वाला गूगलदेव हो तो उत्सुकता चौगुनी हो जाती है।
चलिये सबसे पहले ये देखते हैं कि गूगलदेव आपके चिट्ठे को पिरो रहे हैं या नहीं। काम की कड़ी है
ये जहाँ पर आप अपने चिट्ठे का लिंक देकर ये जान सकते हैं कि गूगलदेव ने आपके चिट्ठे के अस्तित्व को पहचाना या नहीं। नारद के बारे में ये प्रश्न पूछने पर गूगलदेव जो कहते हैं वो यहाँ देखें
दूसरा सूत्रः अगर हमारे चिट्ठे को गूगलदेव ने पिरो रखा है, तो उत्सुकता ये रहती है कि सारे पेज ले लिए या.....खास कर तब जब हम ये जानते हैं कि गूगल के 'मकड़े' सारे साइटों पर समान अंतराल से नहीं विचरते। तो आइये, ब्राउसर में गूगल लोड करें, फिर खोजी बक्से में ये प्रश्न दागें - site:narad.akshargram.com. परिणाम कुछ यूँ दिखेगां। आप परिणाम पृष्ठ पर दाहिने उपर ये भी देख सकते हैं कितने पृष्ठ पिरोये जा चुके हैं, यानि, गूगलदेव के अनुसार आपके साइट पर कितने पृष्ठ हैं।
तीसरा सूत्रः हम अब ये खोजने की कोशिश करेंगे कि यदि कोई गूगलदेव से हमारे चिट्ठे के बारे मे दो चार शब्द कहने का आग्रह करे तो वो क्या बतलाएंगे। यानि छोटा परिचय कैसे देंगे गूगल महाराज। उदाहरणार्थ हम समीर लाल के चिट्ठे को लेंगे। तो फिर से गूगल देव के खोजी पृष्ठ पर आ जाएँ। फिर आप खोजी बक्से में यूँ लिखे info:udantashtari.blogspot.com और Search को चटका दें। परिणाम यूँ आएगा
चौथा सूत्र के बारे में हम कल बातचीत कर चुके हैं। ये वही है जिससे आप आपने बैकलिंक का आभास ले सकते हैं। उदारणार्थ, यहाँ चटकी लगावें
कुल अर्थ ये है कि आप ये जानें कि दूसरे आपके बारे में क्या जानते हैं। हम ये चर्चा जारी रखेंगे, फिलहाल दफ्तर की ओर चलने का समय आ गया है। और हाँ, बात काम की है या नहीं , टिप्पणी करते रहें।

आपके ब्लाग का गूगल पेजरैंक देखने का सरल तरीका

पेजरैंक गूगलदेव का वो तरीका है, जिसके आधार पर गूगल देव ये तय करते हैं कि आपका जालपृष्ठ या चिट्ठा किसी गूगल खोज में कितना उपर या नीचे आता है। ये ०-९ के स्केल पर तय किया जाता है और ये रैंकिंग कुछ सप्ताह के अंतराल पर तय होती है।
शुरुआत मेः यदि आपका जालपृष्ठ या चिट्ठा नया है तो पहली बार का पेजरैंक प्राप्त होने में कुछ महीने भी लग सकते हैं।
क्या देखकर पेजरैंक तय होता है? गूगलदेव की पूरी महीमा तो जग जाहिर है पर पूरी कुंजी सर्वविदित नहीं है। आप ये मान के चल सकते हैं कि काफी हद तक पेजरैंक बैकलिंक के आधार पर तय होता है। यानि कि कितने अन्य जालपृष्ठों या चिट्ठों से आप के जालपृष्ठ या चिट्ठे को लिंक मिली हुइ है। यदि आप तुरत फुरत में ये जाँचना चाहें तो गूगल में इस प्रकार से खोजें link:narad.akshargram.com।या फिर उदाहरण के लिए यहाँ क्लिक करें । चूकि ये जानकारी भी समय समय पर ही अपडेट होती है तो हो सकता है कि कुछ हाल की बैकलिंक्स यहाँ ना दिखे।और हाँ, यदि आपकी साइट या ब्लाग को आपसे अधिक पेजरैंक वाले साइट या ब्लाग से बैकलिंक या ब्लागरोल पर स्थान मिला है, तो ये आपके फायदे मे जाता है।
आगे चलते हैं: यदि आप अपने जालपृष्ठ या चिट्ठे का पेजरैंक चेखना चाहें तो यहाँ दिये गये औजार का प्रयोग करें।
तो कैसे बढाएँ अपने बैकलिंकः बैकलिंक बढाने का सबसे जानदार तरीका ये है कि अपने चिटठे से दूसरों को लिंक देवे। जब लोग आपके चिट्ठे या पृष्ठ को देखेंगे तो आपको भी लिंक मिलेगी। (हाँ कभी कभार एक आध प्यार भरी घुढकी देने की जरुरत पड़ सकती है!)। आप अपने ब्लाग पर एक ब्लागरोल जरुर बनाएँ और दूसरों को स्थान दे।
यदि पाठकगण चाहेंगे तो आने वाले आलेखों में हम इससे जुड़े कुछ और बिन्दुओं पर चर्चा करेंगे।

मंगलवार, मई 22, 2007

राष्ट्रपति कलाम और मुशर्रफ के बीच एक काल्पनिक शिखर वार्ता

(राष्ट्रपति कलाम ने पाकिस्तान के राष्ट्रपति मुशर्रफ को वार्ता की दावत दे डाली। राष्ट्रपति मुशर्रफ भारत आने का मौका कैसे छोड़ते सो निमंत्रण सहज ही स्वीकार कर लिया गया। फिर श्री कलाम ने शर्त ये रखी कि बातचीत वीडियो कांफ्रेंस पर हो। अब फजीहत ये हो गई कि पाकिस्तान में वीडियो कांफ्रेंस की सुविधा तो कहीं है ही नहीं सो राष्ट्रपति मुशर्रफ जहाज पर बैठ वाशिंगटन को रुखसत हो लिये ताकि व्हाइट हाउस से वीडियो कांफ्रेंस कर सकें। तो पेश है ये बातचीत)
समय, भारतीय समयानुसार शाम के ६३० और वाशिंगटन में सुबह के ८ बजे।
कलामः सुप्रभात श्रीमान राष्ट्रपति महोदय
मुशर्रफः सुप्रभात कलाम साहब, कश्मीर...(कलाम नें बीच में ही काट दिया)

कलामः कश्मीर, बिलकुल। अभी थोड़ी देर पहले ही मै राष्ट्रपति भवन के बाग में था, जहाँ हाल ही में कश्मीर से लाए हुए कुछ पौधे लगाए गए हैं। जैसा की आप जानते हैं, प्राचीन भारतीय विधा आयुर्वेद में जड़ी बूटियों का महत्व बखुबी समझाया गया है।आप प्रण करें कि आप केवल जैविक तरीके से उगाए पदार्थों का सेवन करेंगे। आपके लिए मैं इस विषय पर एक कविता भी लाया हूँ। (फिर कलाम कप से कहवा की चुस्की लेते हैं और मुशर्फ मौका ताड़ कर फिर शुरु हो जाते हैं)

मुशर्रफः मेरे देश का बच्चा बच्चा चाहता है कि....

कलामः बच्चे, मैने अपने पाँच वर्ष के राष्ट्रपति काल में तकरीबन दो लाख बच्चों से संपर्क किया है। उन्हें विज्ञान और प्रौद्योगिकी का मह्त्व समझाया है और ये भी कि मेहनत से ही वे सफल हो सकते हैं। मेघालय की एक छात्रा नें मुझसे हाल ही में पूछा कि.......

मुशर्रफः बेहतर होगा कि.....

कलामः बेहतर तो टेलिमेडिसिन है। मेरे देश में २५० जिले, ४६७९ तालुके है, और ५२८३६४ गाँव।हमनें अपने गावों में टेलिमेडिसिन से सुसज्जित वैन भेजने की व्यवस्था की है जो कि सेटेलाइट के माध्यम से मरीजों को विशेषज्ञों कि सेवाएँ उपल्बध करातें हैं। इस प्रकार के विज्ञान का शानदार प्रयोग करते नागरिकों का भला हो सकता है।

मुशर्रफः एक छोटी सी गुजारिश है....

कलामः मैं छोटी चीजों कि बात करने ही वाला था। आने वाले समय में नैनोप्रौद्योगिकी का प्रयोग हर चीज में होगा। नैनोविज्ञान में अभी काफी काम होना है। मेरी सरकार ने ये देखते हुए देशभर में चार नैनोविज्ञान अनुसंधान संस्थान स्थापित किए है। नैनोविज्ञान ही क्यों, बायोटेकनोलोजी भी.......

मुशर्रफः मैं सामरिक.......

कलामः किसी व्यक्ति के सामरिक लक्ष्य को दृष्टि और काबिलियत से जोड़ने की जरुरत है। हाल ही में मैं आई आई एम गया था जहाँ का टापर एक ऐसा विद्यार्थी था जो बहुत छोटे से गाँव का था। जानते हैं वो क्यों टापर था?वो इस लिए टापर था क्योंकि उसने बचपन में ही लक्ष्य तय कर लिया था। फिर उसने गणित पर बड़ी मेहनत की। वही गणित जिसमें भारत में रामानुजम और आर्यभट्ट जैसे उस्ताद हुए।

(समय खत्म होने को आ रहा था । अब तक मुशर्रफ अपने तैयार किए गए डायलौग भी भूल चुके थे। बात उन्हें भी पते की लग रही थी। सोच रहे थे कि जब विज्ञान से ये सब संभव है तो ये सब किसी कमबख्त अधिकारीयों ने उन्हें क्यों नहीं बताया। गु्र्रा के उन्होंने अपने पीछे बैठे अधिकारी से पूछा - नोट्स ले रहे हो ना?

इस पर कलाम साहब नें ये बोलाः नोटस लेने कि बिलकुल जरुरत नहीं है। पंद्रह मिनट में इस बातचीत की प्रतिलिपि राष्ट्रपति भवन के वेबसाइट पर होगी। तीस मिनट बाद आपको एक एमपीईजी फाइल मेल कर दी जाएगी। या मेल आइ डी अगर आपके पास नहीं हो तो मेरे लड़के इसे यू ट्यूब पर डाल देंगे। अंतरजाल की सुविधा तो आपके पास होगी ना?

सोमवार, मई 07, 2007

अगले विश्व कप का कार्यक्रम घोषित- जरूर पढ़िए

आई सी सी ने इस बेहद लंबे चले विश्व कप से सीख लेते हुए अगले संस्करण के कार्यक्रम में थोड़ा बदलाव किया है।सर्वप्रथम उदघाटन कार्यक्रम होगा। इसके तुरंत बाद पुरस्कार समारोह बहुत धूम - धाम से होगा, जहाँ कप आस्ट्रेलिया को दे दिया जाएगा।

शनिवार, मई 05, 2007

चंद्रयान क्या वाकई चाँद पर जाएगा?

मेरे साथी चिटठाकार पंकज बेंगाणी ने हमेशा की तरह एक संदर्भ वाले विषय पर अच्छा आलेख प्रस्तुत किया है।मैं कोई खराब स्वाद नहीं पैदा करना चाहता पर फिर भी मुझे इसमें उत्साहित होने लायक कोई बात नहीं दिखती।कल के लाँच से ३२८ कि ग्रा का सेटेलाइट तकरीबन ३०० कि म की कक्षा में दागा गया। संचार और टी वी के लिए दो-तीन टन वजनी सेटेलाइट ३६००० कि मी की कक्षा में स्थापित करना होता है। असली पैसा तो इसी प्रकार के प्रक्षेपण में है। हम इस से अभी दशकों दूर हैं। इसी कारण से हमारे संचार उपग्रह अभी भी किराए की सवारी करते हैं। उधर चीन वाले दनादन राकेट दागते चले जा रहे हैं।उधर चंद्रयान की बात हो रही है। अपोलो-११ मिशन को १९६९ में चाँद पर जाने में चार दिन लगे थे। हमारे राकेट तो अभी दो चार घंटे की उड़ान भी नहीं भर पाते। तो २००८ में किस चंद्रयान के प्रक्षेपण की बात हो रही है। मेरा कहने का इरादा केवल ये है कि अभी इस क्षेत्र में अभी काफी रास्ता तय किया जाना बाकी है, बेहिसाब अपनी पीठ ठोकने की शायद अभी जरुरत नहीं।

मंगलवार, मई 01, 2007

अगर माइक्रोसाफ्ट वाले आईपाड बनाने लगें तो

आईपाड कहलाने बाला संगीत सुनने वाला यंत्र ऐप्पल नामकी कम्पनी बनाती है। ये उपकरण दुनिया भर में काफी प्रचलित हो रहे है। जरा देखिये कि यदि आईपाड ऐप्पल की बजाय माइक्रोसाफ्ट बनाने लगती तो शायद अनुभव थोड़े दूसरे होते, खास तौर पर पैकेजिंग कैसे की जाती। ये वीडियो काफी किसी कि कल्पना है, मगर काफी सोच विचार कर बनाया गया है। काफी मजेदार है, जरुर देखें।